मिर्ज़ापुर जिले में बड़ी संख्या में लोग पत्थर खदानों में काम करते हैं और अनेक लोग कई साल तक सिलिका धूल के संपर्क में रहने के कारण सिलकोसिस के शिकार हैं। इनमें से कइयों का इलाज टीबी की दवाओं द्वारा होता रहा है। जबकि सिलकोसिस एक असाध्य बीमारी है। इस पर कोई ठोस काम करने की बजाय स्वस्थ्य विभाग और सरकार लगातार चुप्पी बनाए हुये है।
सभी को स्वास्थ्य सुविधाएं देने का दावा करने वाली सरकार की वास्तविकता यह है कि आज भी देश में लाखों महिलाएं और उनके पैदा हुए नवजात बच्चे टीकाकरण और उपचार के अभाव में अनेक बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। इसका मुख्य कारण दस्तावेज का न होना, जिसकी जरूरत सरकारी इलाज के दौरान पड़ती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि सरकार द्वारा जो आँकड़ें जारी किए जा रहे है, उसमें कितनी सच्चाई होगी?
आज सरकार रेवडियों की तरह आयुष्मान कार्ड तो बना रही है लेकिन सालाना स्वस्थ्य का बजट नहीं बढ़ा रही है। ऐसे में सरकार की गरीब लोगों को अच्छी और मुफ्त स्वास्थ्य योजना का लाभ देने की मंशा पर बड़ा सवाल खड़ा होता है।
आशा बहुओं ने आरोप लगाया कि सरकार केवल उनका इस्तेमाल कर रही है। स्वास्थ्य विभाग में तैनात आशा बहुएं काफी समय से कलमबंद हड़ताल कर रही हैं। उनकी प्रमुख मांग है कि उनके महीने की सैलरी 15 हजार रूपया किया जाय।