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जिंदा साबित करने की ज़द्दोजहद में साढ़े चार दशक

उनके उस पीड़ादायी संघर्ष को मनोरंजक घटना के रूप में पेश कर उनके जीवन संघर्ष की अहमियत और व्यवस्था के अन्याय की असलियत को ढँक देती थीं। बाद में उनसे लम्बी मुलाकात के बाद उनके भोगे गए त्रासद समय और संघर्ष की कथा सामने आयी। सन् 2003 में उन्हें हावर्ड विश्वविद्यालय अमेरिका का ग्लोबल पुरस्कार मिला था। पहली मुलाकात में इसी पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया था कि वह अमेरिका नहीं जा पायेंगे क्योंकि उनके पास पैसा नहीं है। लेकिन उन्हें खुशी है कि उनकी लड़ाई को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान और समर्थन मिला। लालबिहारी मृतक ने एक अद्भुत तरीके की लोकतांत्रिक लड़ाई का सिलसिला शुरू किया। पहले मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक ज्ञापन और अखबारों में अपीलें देना शुरू किया। फिर कुछ अद्भुत तरीकों को भी अपनी लड़ाई में शामिल किया। अपने अस्तित्व को किसी भी तरीके से सिद्ध करने के लिए चचरे भाई का अपहरण किया लेकिन उनके खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं करायी गयी।

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