बिहार की रैली में जिस बड़े पैमाने पर समाजवादी और साम्यवादी संगठनों के लोग मौजूद थे और गांधी मैदान में कहीं हरे झंडे तो कहीं लाल झंडे एक दूसरे से होड़ कर रहे थे, उससे यह भी लगता है कि देश का पूर्वी हिस्सा भारत के पश्चिमी तट पर केंद्रित कॉर्पोरेट और हिंदुत्व की सत्ता के आगे समर्पण के लिए तैयार नहीं है।