यही वह प्रस्थान बिंदु बना जिसने एक नए सुरेन्द्र प्रसाद सिंह को रचना, गढ़ना शुरू किया। जिले के अन्य शिक्षक जहां इस सर्वे का प्रारूप ही नहीं तैयार कर पा रहे थे वहीं सुरेन्द्र प्रसाद सिंह ने सर्वे का पूरा फार्मेट सेट कर दिया था। इनके बनाये हुये सर्वे का फार्मेट ही सर्वे का माडल पत्र बन गया। उसी प्रारूप को प्रिंट कराकर पूरे जिले में वितरित किया गया। यह सर्वजनिक जीवन में पहला ऐसा बड़ा काम था जिसकी प्रसंशा की गई और सुरेन्द्र प्रसाद सिंह वाराणसी शिक्षा विभाग की एक नई उम्मीद भी बने।
मैला ढोने की कुप्रथा पर रोक लगाने के क्रम में धीरज वाल्मीकि का ललौली गांव जाना हुआ। वहां धीरज और उनके साथियों ने मैला ढोने वाली महिलाओं की दिनचर्या की वीडियो फिल्म बनाई। उस वीडियो फिल्म को जिला प्रशासन और विद्याभूषण रावत को दे दिया गया। उस वीडियो में एक 14 साल की लड़की भी मानव मल ढोने का काम कर रही थी। इसी के आधार पर धीरज और उनके साथियों ने जिला प्रशासन पर दबाव बनाया। दिल्ली में विद्याभूषण रावत ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आयोग, बाल आयोग सभी को कटघरे में खड़ा किया।