मधेपुरा में जन्मे और वहीं अध्यापक रहे कुमर किशोर न केवल एक अच्छे अध्यापक रहे बल्कि एक आदर्शवादी पिता भी थे। उन्होंने बहुत कठिन स्थितियों का सामना करते हुये भी अपने मूल्यों और मान्यताओं से समझौता नहीं किया। वे सामाजिक न्याय के प्रबल पक्षधर और भौतिकवादी नज़रिये से दुनिया को देखने वाले इंसान थे। कुमर किशोर हमेशा मानते रहे कि विचार केवल सजावटी अवधारणा नहीं हैं बल्कि व्यवहार में लागू किए जानेवाले सूत्र हैं। विगत दिनों बनारस में 76 वर्ष की आयु में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा। उनके बेटे प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो डॉ ओमशंकर द्वारा उनके बारे में साझा किए गए विचारों पर आधारित अपर्णा का यह स्मृतिलेख।
जिम के आ जाने से आज भले ही कुश्ती का चलन बहुत कम हो चुका हो लेकिन आज से 30-40 वर्ष पहले गाँव में जगह-जगह अलग-अलग पहलवान गुरुओं के अखाड़े हुआ करते थे और गाँव के शौकीन और जुनूनी युवा पहलवानी करने जाया करते थे। अखाड़ों के बीच इवेंट की तरह कुश्तियाँ हुआ करती थीं। ग्रामकथा में आज मधेपुरा के इसरायंणकलां गाँव की कहानी -