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male chauvinism
कब खत्म होगी महिलाओं की दोयम नागरिकता
बलात्कार जिस तरह पुरुषप्रधान व्यवस्था के वर्चस्व-संबंधों की पाशविक अभिव्यक्ति होती है, उसी तरह (महज़) बलात्कार का किया जाने वाला; बलात्कार की घटनाओं को नाटकीय बनाने वाला विरोध भी ‘उनकी’ महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के कारण ‘उनकी’ इज़्ज़त के ख़तरे में आने का कारण बन जाती है और फिर पुरुषप्रधान चर्चाओं की प्याली में तूफ़ान आ जाता है। इसके अंतर्गत महिलाओं पर होने वाले लैंगिक अत्याचारों की घटनाओं का ख़तरनाक तरीक़े से विरोध किया जाता है। ‘बलात्कारियों को तत्काल सरेआम फाँसी की सज़ा’ के केंद्रीय वक्तव्य के आसपास आज जो महिला सक्षमीकरण का चर्चा-विश्व निर्मित किया जा रहा है, वह महिलाओं के आत्मनिर्भर सामाजिक व्यवहार के लिए अनेक स्तरों पर ख़तरनाक साबित होता है।

