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दाल देख और दाल का पानी देख!

नेफेड और राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता फेडरेशन (एनसीसीसीसी) बता रहा है कि सरकार के गोदाम में केवल 14.5 लाख टन दाल ही बची है, जो कि न्यूनतम आवश्यकता का केवल 40% ही है। इसमें तुअर दाल 35000 टन, उड़द 9000 टन, चना दाल 97000 टन ही है, जिसे लोग खाने में सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। इन दालों की जगह दूसरी दाल के इस्तेमाल के बारे में सोचें, तो मसूर दाल का स्टॉक भी केवल पांच लाख टन का ही बचा है। भारत के संभावित दाल संकट पर संजय पराते।

बिहार : गांव को कुपोषण मुक्त बनाने के लिए मजबूत पहल की जरूरत

ग्रामीण क्षेत्रों में भी कुपोषण की समस्या पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है। हालांकि केंद्र और राज्य सरकार इस दिशा में काफी गंभीर प्रयास कर रही है। लेकिन अभी भी बहुत से ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां महिलाओं और बच्चों में कुपोषण की समस्या नज़र आती है।

राजस्थान : दस्तावेजों की कमी के कारण महिलाओं को नहीं मिल पाती स्वास्थ्य सुविधाएँ

सभी को स्वास्थ्य सुविधाएं देने का दावा करने वाली सरकार की वास्तविकता यह है कि आज भी देश में लाखों महिलाएं और उनके पैदा हुए नवजात बच्चे टीकाकरण और उपचार के अभाव में अनेक बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। इसका मुख्य कारण दस्तावेज का न होना, जिसकी जरूरत सरकारी इलाज के दौरान पड़ती है।  ऐसे में सवाल यह उठता है कि सरकार द्वारा जो आँकड़ें जारी किए जा रहे है, उसमें कितनी सच्चाई होगी? 

कुपोषण से निज़ात पाये बिना विकसित भारत का दावा कैसे किया जा सकता है

प्रश्न उठता है कि क्या वास्तव में भारत के बच्चे, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे, कुपोषण मुक्त और स्वस्थ हैं? हालांकि सरकारों की ओर जारी आंकड़ों में कुपोषण के विरुद्ध जबरदस्त जंग दर्शाई जातीहै, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि अभी भी हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में गर्भवती महिलाएं और 5 पांच तक की उम्र के अधिकतर बच्चे कुपोषण मुक्त नहीं हुए हैं।

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