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अभाव और बदहाली में जीने वाले अकेले कलाकार नहीं हैं गोविंदराम झारा
अपर्णा -
गोविंद राम झारा राज्य शिखर सम्मान और राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त झारा शिल्पियों में पहले ऐसे कलाकार हैं, जिन्हें यह सम्मान मिला। लेकिन आज वह गरीबी और बदहाल स्थिति में पुश्तैनी घर में अपनी पत्नी के साथ रहते हुए बामुश्किल जीवन काट रहे हैं। आज से पंद्रह साल पहले कैंसरग्रस्त बेटी के इलाज करवाने में आर्थिक और मानसिक रूप से पूरी तरह टूट गए और उसके बाद वे उबर नहीं पाए। घर के अंदर जाने के दरवाजे के ऊपर एक बड़ी सी नाम पट्टिका लगी हुई है जिस पर गोविंदराम झारा का नाम लिखा हुआ है। घर में अंदर घुसने पर एक बत्ती कनेक्शन द्वारा लाइट की सुविधा मिली हुई है। जहां पर लट्टू बल्ब जल रहा था और एक कोने में बुझे हुए चूल्हे के ऊपर और आसपास एक कोने में और 5-7 बर्तन दिखे और एक छींका लटका हुआ था और नीचे बेतरतीबी से एक गुदड़ी पड़ी हुई थी। अगली दीवार पर एक बंद दरवाजा था, जिसे खोलने पर एक आँगन और आँगन से लगे हुए दो कच्चे कमरे उनके छोटे बेटे डहरु झारा और उनके परिवार का है।

