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भोपाल गैस कांड : मानवीयता कभी खत्म नहीं हुई, पीड़ित लोगों के संघर्ष के साथ हैं ये लोग

भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड प्लांट में 2 दिसंबर 1984 को आधी रात में मिथाइल आइसोनेट (एमआईसी) के रिसाव के कारण लगभग दस हजार लोगों की मौत हो गई थी। इस हादसे को आज 40 वर्ष हो जाने के बाद भी बचे हुए लोगों के स्वास्थ्य पर इसका असर देखा जा रहा है। हादसे के बाद भोपाल की जो स्थिति थी, उसे संभालने के लिए अनेक संस्थाओं और व्यक्तियों ने लगातार गैस पीड़ितों के लिए काम किया।

कोरबा : माकपा के नेतृत्व में ग्रामीणों ने रेल विस्तार के काम को रोका

छत्तीसगढ़ किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष जवाहर सिंह कंवर ने मांग की है कि रेल विस्तार के कारण हुए नुकसान को ठीक किया जाए और बांकी मोंगरा से मड़वाढोढा एवं पुरैना गांव जाने वाले मुख्य मार्ग को तत्काल ठीक कराया जाए, अन्यथा रेल विस्तार के कार्य को अनिश्चित काल के लिए बंद रखा जाएगा।

नट समुदाय : पाँच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था के दावे के बीच पूरा समुदाय आदतन अपराधी के तौर पर उत्पीड़न झेलने को अभिशप्त

जैसे ही नट समुदाय की बात होती है, वैसे ही सभी के जेहन में या जुबान पर उनके चोर होने व उनसे सतर्क रहने का भाव या बात सामने आती है। यह बात आज नहीं बल्कि 150 वर्ष पहले लागू की गई थी, जब ब्रिटिश सरकार ने 1871 से 1952 के बीच, वीजेएनटी जनजातियों पर 'जन्मजात अपराधी' माना, लेकिन स्वतंत्रता के बाद, विभिन्न जनजातियों में पुनर्वर्गीकरण होने के बाद, उनके सामाजिक बहिष्कार व बुनियादी सुविधाओं से वंचित होने के साथ 'आदतन अपराधी' के कलंक का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उसके बाद भारतीय संविधान में 1952 में संशोधन कर इसे 'आदतन अपराधी' माना गया। पुलिस-प्रशासन कैसे इसे उपयोग में लाते हुए नट बस्तियों में रहने वाले लोगों को प्रताड़ित करते हैं, पढ़िये प्रेम नट की ग्राउंड रिपोर्ट 

कैफियत से आजमगढ़ के किसान हरदोई में सोशलिस्ट किसान सभा के राष्ट्रीय सम्मेलन के लिए रवाना

सोशलिस्ट किसान सभा के राष्ट्रीय महासचिव ने बताया कि हरदोई में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में आज़मगढ़ से किसानों-मज़दूरों और तमाम किसान नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल शामिल होने रवाना हो चुका है।

वाराणसी : सर्व सेवा संघ परिसर को नष्ट कर सरकार परम्परा और संस्कृति को नष्ट कर रही है – टीके एस अजीज़

गांधी की विरासत को बचाने के लिए वाराणसी स्थित राजघाट परिसर के सामने चल रहे सत्याग्रह का आज 84 वां दिन है। आज गांधीवादी कार्यकर्ताओं ने स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति एवं संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद को अपनी श्रद्धांजलि दी।

यशपाल और विद्रोही जैसे रचनाकार मानव–मुक्ति के बड़े रचनाकार हैं – डॉ. रामबाबू आर्य

दरभंगा  में जसम ने मार्क्सवादी कथाकार यशपाल एवं जनकवि रमाशंकर यादव विद्रोही को उनकी जयंती पर शिद्दत से याद किया और एक विचार संगोष्ठी का आयोजन किया।

वाराणसी : एलजीबीटी+ समुदाय पर आधारित फिल्म स्क्रीनिंग के बाद हुई चर्चा

2018 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा धारा 377 को खत्म कर दिया है। बावजूद इसके एलजीबीटी+ समुदाय के लोगों के आपस में विवाह करने, साथ रहने, पसंद करने, मिलने जुलने पर समाज में और प्रशासन के लोगों में समुदाय के प्रति एक उपेक्षा, घृणा, उत्सुकता और आश्चर्य का भाव दिखाई देते हैं। बनारस क्वीयर प्राइड ने फिल्म 377 एब्नॉर्मल का प्रदर्शन किया गया।

लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई संसद से ज्यादा सड़क पर लड़नी पड़ेगी

आजादी के बाद की पीढिय़ां इस दायित्व का निर्वाह ईमानदारी से नहीं कर पाई हैं। इसीलिए संविधान विरोधी और देश विरोधी विचार और राजनीति आज संवैधानिक सत्ता पर काबिज है। उसका मुकाबला तभी हो सकता है जब हम संविधान की भाषा को जनता के मुहावरे और जनता के सरोकार से जोड़ें।

उत्तराखंड : कंप्यूटर सेंटर के अभाव में डिजिटल साक्षरता से वंचित पहाड़ी समुदाय

किशोरियों के भविष्य को संवारने के लिए डिजिटल साक्षरता को प्राथमिकता देना समय की मांग भी है। यह न केवल उनके करियर की संभावनाओं को बढ़ाएगा, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनने की दिशा में भी सशक्त करेगा। यदि समय रहते इस दिशा में कदम उठाए गए, तो यह पहल ग्रामीण समाज को साक्षर और सशक्त बनाने में सहायक सिद्ध होगा।

पूजा स्थल विवाद : आरएसएस और भाजपा पूजा स्थल अधिनियम 1991 का खुला उल्लंघन कर रहे हैं

क्या कारण है कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 के पारित के बाद भी अभी हाल के समय में अनेक मस्जिद व दरगाहों के सर्वे के दावे सामने आने लगे, और इसके बाद सेवा निवृत हुए मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड लगातार निशाने पर हैं क्योंकि उन्होंने वाराणसी के ज्ञानवापी में सर्वे की अनुमति देने के बाद कहा था कि पूजा स्थल अधिनियम की धारा 3 में पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र का पता लगाने पर कोई रोक नहीं है, उनका यही बयान मस्जिदों के सर्वे की याचिकाकर्ताओं के साथ है जबकि इसी अधिनियम की धारा 4, 15 अगस्त, 1947 को मौजूद धार्मिक स्थलों के स्वरूप को बदलने पर रोक लगाती है। मस्जिदों और दरगाहों के सर्वे की अनुमति साम्प्रदायिक माहौल को बिगाड़ने की साजिश के अलावा कुछ और नहीं है।

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