स्त्री
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शिक्षा के माध्यम से आगे बढ़ रहीं हैं गाँव की लड़कियाँ
मुजफ्फरपुर (बिहार)। जीवन में सफलता प्राप्त करने और कुछ अलग करने के लिए शिक्षा अर्जित करना सभी के लिए महत्वपूर्ण है। यह स्त्री एवं पुरुषों दोनों के लिए समान...
बहू और बेटी में भेदभाव करता समाज
भारतीय समाज जटिलताओं से भरा हुआ है, जहाँ रीति-रिवाज के नाम पर कई प्रकार की कुरीतियां भी शामिल...
नहीं रुक रहा है किशोरियों के साथ भेदभाव, आज भी समझा जाता है बोझ
भारत में हर बच्चे का अधिकार है कि उसे, उसकी क्षमता के विकास का पूरा मौका मिले। लेकिन...
ग्रामीण महिलाओं के सशक्तीकरण का माध्यम बना इंटरनेट
कहा जाता है कि महिला सशक्तीकरण एक ऐसी अनिवार्यता है, जिसकी अवहेलना किसी भी समाज और देश के...
लैंगिक असमानता का शिकार होती पर्वतीय महिलाएं
'लड़की हो दायरे में रहो...' यह वाक्य अक्सर घरों में सुनने को मिलता है, जो लैंगिक असमानता का...
बाल विवाह का दंश झेल रहीं पिछड़े समुदाय की किशोरियां
पूरे भारत में 49 प्रतिशत लड़कियों का विवाह 18 वर्ष की आयु से पूर्व ही हो जाता है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में 68 प्रतिशत बाल विवाह अकेले बिहार में होते हैं। हालांकि भारत की स्वतंत्रता के समय न्यूनतम विवाह योग आयु लड़कियों के लिए 15 वर्ष और लड़कों के लिए 21 वर्ष निर्धारित थी। वर्ष 1978 में सरकार ने इसे बढ़ाकर क्रमशः 18 और 21 वर्ष कर दिया था।
एकल नहीं, मजबूर माँ का मातृत्व दिवस
माँ के बलिदानों की तुलना किसी से नहीं की जा सकती। मातृशक्ति का वर्णन अक्षरों में नहीं समेटा जा सकता। केवल शहरी एकल माताओं को सुर्खियां बनाना भी एकतरफा है। माँ तो माँ है। माँ के संघर्षों को सराहा जाना चाहिए ना कि महिमामंडन द्वारा उनके बलिदान को नकारा जाए।
माहवारी पर आखिर इतना भेदभाव क्यों?
लोगों के मन से रूढ़िवादी सोच निकलने का नाम नहीं ले रही है। ऐसा लगता है कि रूढ़िवादी और प्रथाओं के आगे समाज ने अपने घुटने टेक दिए हैं। समाज को अपने ही बच्चों का कष्ट दिखाई नहीं दे रहा है। इस पीड़ा और अज्ञानता से बाहर निकलने के लिए खुद महिलाओं और किशोरियों को आवाज उठानी होगी।
मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता है जरूरी
हमारे समाज और गांव घरों में खासतौर से अभी भी यह रूढ़िवादी धारणाएं बनी हुई हैं कि मासिक धर्म के दौरान महिलाओं और किशोरियों को अलग रखना चाहिए। धीरे-धीरे लोगों की सोच में परिवर्तन हो रहा है। हमारे गांव में अब किशोरियों को अलग रखना बंद कर दिया गया है। थोड़ी बहुत अब भी यह कुप्रथा जारी है। धीरे-धीरे यह भी बदल जाएगा। सरकार द्वारा चलाई गई योजना सही साबित हो रही है क्योंकि आशा वर्कर मासिक धर्म और उसकी साफ-सफाई के बारे में लोगों को जागरूक करती हैं।
मेरी एक बेटी को बेच दिया गया क्योंकि घर के सारे फैसले लेने का अधिकार पुरुषों को ही है
लैंगिक असमानता झेलती किशोरियां और महिलाएं
गनीगांव (उत्तराखंड)। प्रत्येक बच्चे का अधिकार है कि उसे उसकी क्षमता के विकास का पूरा मौका मिले। लेकिन समाज...
छोटे शहरों में स्टार्टअप का रूप ले चुका है ब्यूटी पार्लर
भारत में कुछ व्यवसाय ऐसे हैं जो लगातार बढ़ रहे हैं और इसमें शामिल लोग अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं। इनमें महिलाओं के...