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भगत सिंह और उनकी शहादत आज भी प्रासंगिक
सावरकर और भगत सिंह में कोई तुलना नहीं है। अपने जीवन के शुरुआती दौर में भले ही सावरकर ने ब्रिटिश सरकार से लोहा लिया हो परंतु कालापानी की सजा मिलने के बाद तो वे पूरी तरह से अंग्रेजों के आगे नतमस्तक हो गए थे। उन्होंने कई दया याचिकाएं लिखीं और जेल से रिहा किए जाने के बाद अंग्रेजों की मदद की। उन्हें सरकार की ओर से 60 रूपये प्रतिमाह की पेंशन मिलती थी। उस समय सोने का दाम 10 रूपये प्रति दस ग्राम था।
भगत सिंह को मैं अपना आदर्श क्यों नहीं मानता? (डायरी 15 अगस्त, 2022 की शाम)
भारतीय फिल्मों ने भारतीय समाज को बहुत कुछ दिया है। हालांकि यही बात हर मुल्क की फिल्मों के बारे में कही जा सकती है।...