मनुष्य की तीन चिंताओं रोटी कपड़ा और मकान में सब की सब किसी न किसी रूप में भयावह होती जा रही हैं। रोटी के लिए अस्सी करोड़ लोगों का सरकारी अनाज पर निर्भर होते जाना यह बताता है कि सरकार और पूँजीपति वर्ग लोगों को रोजगार देने में पूरी तरह नाकाम हो चुके हैं। कपड़े का संकट भी कम नहीं है लेकिन मकान सबसे भयावह संकट में घिरा हुआ है। बेहतर आवासीय पर्यावरण निम्नमध्यवर्ग के लिए एक दुर्लभ सपना बन चुका। ऐसे में किसी राज्य सरकार का बुलडोजर नीति में भरोसा और सत्ता की ताकत से लोगों का घर गिरा देना और उन्हें बेघर कर देना एक राजनीतिक षड्यंत्र और अक्षम्य अपराध के सिवा कुछ नहीं है। जो लोग राजसत्ता की बुलडोजर नीति की तरफ़दारी कर रहे हैं वे वास्तव में समस्या को एकांगी तरीके से देखने को अभिशप्त हो चुके हैं। अंजनी कुमार अपने इस लेख में भारत की आवास समस्या के लगातार विकराल होते जाने को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देख और समझ रहे हैं। उन्होंने राजनीतिक अर्थशास्त्र के नजरिये से मेहनतकश वर्ग के प्रति सरकारों और पूँजीपतियों की बेइमानियों को उजागर करने का महत्वपूर्ण प्रयास किया है।