Sunday, July 6, 2025
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

अंजनी कुमार

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

शहरों में मेहनतकशों के घरों पर बुलडोजर न्याय नहीं, आवास की भीषण समस्या पर पर्दा डालना है

मनुष्य की तीन चिंताओं रोटी कपड़ा और मकान में सब की सब किसी न किसी रूप में भयावह होती जा रही हैं। रोटी के लिए अस्सी करोड़ लोगों का सरकारी अनाज पर निर्भर होते जाना यह बताता है कि सरकार और पूँजीपति वर्ग लोगों को रोजगार देने में पूरी तरह नाकाम हो चुके हैं। कपड़े का संकट भी कम नहीं है लेकिन मकान सबसे भयावह संकट में घिरा हुआ है। बेहतर आवासीय पर्यावरण निम्नमध्यवर्ग के लिए एक दुर्लभ सपना बन चुका। ऐसे में किसी राज्य सरकार का बुलडोजर नीति में भरोसा और सत्ता की ताकत से लोगों का घर गिरा देना और उन्हें बेघर कर देना एक राजनीतिक षड्यंत्र और अक्षम्य अपराध के सिवा कुछ नहीं है। जो लोग राजसत्ता की बुलडोजर नीति की तरफ़दारी कर रहे हैं वे वास्तव में समस्या को एकांगी तरीके से देखने को अभिशप्त हो चुके हैं। अंजनी कुमार अपने इस लेख में भारत की आवास समस्या के लगातार विकराल होते जाने को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देख और समझ रहे हैं। उन्होंने राजनीतिक अर्थशास्त्र के नजरिये से मेहनतकश वर्ग के प्रति सरकारों और पूँजीपतियों की बेइमानियों को उजागर करने का महत्वपूर्ण प्रयास किया है।

उप्र कारखाना संशोधन विधेयक 2024 : मजदूरों को गुलाम बनाने का कानून

सापेक्षिक विकास की दर एक भ्रामक संख्या होती है। औद्योगिक विकास की दर हमेशा गुणात्मक छलांग लेकर आती है। यह गणित की सरल एक रेखीय गति में नहीं होती है। मजदूरों के 12 घंटे वाले कानून का संशोधन सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं है बल्कि तमिलनाडु, कर्नाटक से लेकर राजस्थान तक में विकास की छलांग लगाने  के लिए 12 घंटे काम का प्रावधान चल रहा है। ये सारी कोशिशें पूंजी निवेश की इस उम्मीद पर की जा रही है कि चीन से निकली पूंजी भारत में आ गिरे और भारत एशिया का नया ताइवान बन जाए।

अच्छी नौकरी बनाम अच्छा वेतन : कॉर्पोरेट जितना खून चूसता है, उतना पौष्टिक भोजन खरीदने के पैसे नहीं देता

देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का समझौता कॉर्पोरेट से होता रहता है लेकिन उस मजबूत हुई अर्थव्यवस्था का असर आम जनता के जीवन की जरूरतों पर दिखाई नहीं देता बल्कि पूँजीपतियों का दुनिया के रईसों की सूची में आए हुए उनके नाम से सामने आता है। आर्थिक आंकड़ें और सामाजिक सूचकांकों में हुई प्रगति का विश्लेषण करने पर यह भले अन्य देशों से बेहतर दिखाई देगा लेकिन जमीनी हकीकत बद से बदतर है।

लेखक के स्मृति चिन्हों की बदहाली के दौर में प्रेमचंद

गोरखपुर से प्रेमचंद का नाता बहुत भावप्रवण और आत्मीय था। यहीं पर उन्होंने जीवन की बुनियादी नैतिकता और आदर्श का पाठ सीखा। लेकिन आज गोरखपुर में उनके स्मृतिचिन्ह लगातार धूसरित हो रहे हैं। ऐसा लगता है नयी पीढ़ी की टेक्नोसेंट्रिक प्रवृत्ति ने उन्हें इस बात से विमुख कर दिया है कि उनके शहर में एक कद्दावर लेखक की जवानी के दिन शुरू हुये थे और वह लेखक पूर्वांचल की ऊर्जस्विता और रचनाशीलता को आज भी एक ज़मीन देता है। प्रेमचंद जयंती के बहाने अंजनी कुमार ने गोरखपुर की नई मनःसंरचना की पड़ताल की है।

निज़ामाबाद के काले मृदभांड : कठिन परिश्रम और सूझबूझ से चमकदार बनते हैं ये बर्तन -2

इतने खूबसूरत बर्तन बनाने में मिट्टी तैयार करने से लेकर उसकी सजावट करने के बाद बाजार तक लाने में बेहिसाब मेहनत लगती है, आज की पूंजीवादी व्यवस्था में यह काम आसान नहीं है लेकिन निज़ामाबाद में यहाँ का कुम्हार समुदाय पूरे परिवार के साथ इस काम में लगा हुआ है। इसके बावजूद इन्हें इसकी उचित कीमत नहीं मिल पाती। इन शिल्पकारों की चिंता इसे कला को बचाने की है। पढ़िए अंजनी कुमार की ग्राउन्ड रिपोर्ट का दूसरा और अंतिम भाग।

निजामाबाद के काले मृद्भांड : समय की मार से पिछड़ता हुआ एक हुनर और उसके उपेक्षित शिल्पकार – 1

एक समय भारत में ऊंचे मुकाम पर प्रतिष्ठित प्रायः सभी शिल्पकारों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति आज बहुत अच्छी नहीं रह गई है क्योंकि उनके काम की मांग खत्म होती जा रही है। निजामाबाद के काले मिट्टी के बर्तन की कला की दुनिया भर में इस कस्बे की एक पहचान है। यह रोज़मर्रा की जरूरतों को पूरा करने के साथ ही रहन-सहन के वैभव को दर्शाती रही है। लेकिन पूंजीवादी अर्थव्यवस्था ने अनेक विकल्प ला दिये जिससे यह पारंपरिक काम बाहर होता गया। संरक्षण और व्यापक बाज़ार न मिलने के कारण यह काम करने वाले अब अब इससे विमुख होते जा रहे हैं और यह कला भी मर रही हैं। सवाल यह उठता है कि सरकार इस तरह की कलाओं को सहेजने के लिए क्या कर रही है? प्रस्तुत है अंजनी कुमार की ग्राउंड रिपोर्ट।

बजट 2024 : बेरोजगारी और लघु उद्योगों की बरबादी के साये में चल रही मोदी की तीसरी सरकार के बजट में मेहनतकशों के हिस्से...

वर्ष 2024 का आम बजट पेश हो गया है। इस बजट में सरकार ने 11.11 लाख पूंजी निवेश का प्रावधान रखा है लेकिन इस निवेश से कितने रोजगार पैदा होंगे देखने वाली बात होगी क्योंकि कोरोना में हुए लॉकडाउन के बाद लगभग सभी उद्यमों पर बहुत खराब प्रभाव पड़ा था और बड़े पैमाने पर बेरोजगारी पैदा हुई थी। उसके बाद बेरोजगारी की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ बल्कि दिनों-दिन खराब ही होता रहा। कल पेश हुए बजट में इसका असर साफ दिखाई दिया।

देश में टूटते समाज और बेरोजगारी का भयावह परिणाम है आत्महत्या की बढ़ती दर

किसी भी आत्महत्या के समाचार मिलने के बाद, कुछ देर आत्महत्या के कारणों के कयास लगाए जाते हैं लेकिन आत्महत्या करने के लिए जिन मानसिक व आर्थिक दबावों का सामना व्यक्ति करता है, उससे उबरने की कोशिश करने का माद्दा उसमें बचा नहीं होता। देश में आत्महत्या के आंकड़ें जिस गति से बढ़ रहे, उसके लिए बढ़ते मानसिक दबाव के साथ अवसाद प्रमुख है। भले यह लोगों को व्यक्तिगत कारण लगे लेकिन इसके लिए सरकार द्वारा लागू नीतियाँ पूर्णत: जिम्मेदार है।

महिला आरक्षण अधिनियम लागू होने के बाद भी लोकसभा चुनाव, 2024 में महिलाओं की हिस्सेदारी घट गई है

दुनिया की आधी आबादी की हर क्षेत्र में समान भागीदारी की बातें होती हैं। हमारे देश में 18 सितंबर 2023 को नारी शक्ति  वंदन अधिनियम पारित किया गया, जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभा में महिलाओं के लिए कुल सीटों में से एक तिहाई याने 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान लागू किया गया। जिसके तहत लोकसभा की 543 सीटों में से 181 सीटों पर महिला संसद के लिए हैं लेकिन लेकिन सवाल यह उठता है कि अधिनियम के आ जाने के बाद 2024 में संसद तक मात्र 74 महिलाएं ही पहुँच पाई हैं, जो पिछली लोकसभा से 1 प्रतिशत कम ही है।

2024 का लोकसभा चुनाव : संख्या के भंवर में बहुमत का खेल और भविष्य की राजनीति

भाजपा की राजनीति ने सिर्फ लोगों के अन्दर चिंगारियां भरने का काम किया है। इसलिए हमें ऐसी राजनीति से परहेज करना चाहिए और समता मूलक समाज की स्थापना में अपना योगदान देना चाहिए। गांधी की यात्राएं कांग्रेस को गांव-गांव तक पहुंचा देने और वहां संगठन खड़ा कर देने में बदल गईं। एक जनवादी आंदोनल के लिए इस तरह की यात्राएं बहुत ही जरूरी हैं। जब ऐसी यात्राएं बंद होती हैं तो जनसंगठन और पार्टियाँ लोगों को विनाश की ओर ले जाती हैं ।

चुनाव का एग्जिट पोलः चुनाव के नतीजों की चिंता या कारोबार

देश में आम जनता द्वारा चुनाव से पहले आने वाली बातचीत से ऐसा लग रहा था कि चुनावी नतीजों में भारी फेरबदल हो सकता है लेकिन गोदी मीडिया ने लोकसभा चुनाव के सात चरणों के चुनाव खत्म होते ही एक्ज़िट पोल से यह बता दिया कि भाजपा पूर्ण बहुमत से या कहें भारी बहुमत से सत्ता में आ रही है। इस तरह जब चुनाव की प्रक्रिया को प्रभावित करने, उसे पक्ष में लाने और जीत में बदल देने का प्रबंधन व्यवस्था काम करने लगे और यह सीधे बाजार और शासन पर नियंत्रण का हिस्सा बन जाए, तब वहां सिर्फ वोट देने वाला ही नहीं, पूरी प्रक्रिया ही प्रभावित होने लगती है।
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