ताज़ा उदाहरणों से भी जानना हो कि भाजपा को ज्यादा पीछे रह गए ओबीसी-एससी-एसटी समाज की कितनी चिंता है तो लैटरल इंट्री की ख़तरनाक पॉलिसी को ही देख लीजिए, जिसे अभी-अभी भारी दबाव के चलते स्थगित तो करना पड़ा है। इसके जरिए भारत की नौकरशाही पर कारपोरेट वर्चस्व को न केवल स्थापित करना है बल्कि आरक्षण को भी हायर लेवल पर पूरी तरह खत्म करने की योजना की झलक साफ-साफ दिखती है।
सर्वज्ञात है कि भाजपा ने मंडल के खिलाफ कैसे एक षड्यंत्र कारी अभियान शुरू किया और अपनी ताकत को पूरी तरह कमंडल की राजनीति में क्यों झोंक दिया? क्या भाजपा ने केंद्र या प्रदेश स्तर पर कभी मंडल आयोग की सिफारिशों के प्रति अपनी सदिच्छा ज़ाहिर की।