राजनीति
कितनी खतरनाक है आरक्षण में बंटवारे के पीछे की मूल मंशा
ताज़ा उदाहरणों से भी जानना हो कि भाजपा को ज्यादा पीछे रह गए ओबीसी-एससी-एसटी समाज की कितनी चिंता है तो लैटरल इंट्री की ख़तरनाक पॉलिसी को ही देख लीजिए, जिसे अभी-अभी भारी दबाव के चलते स्थगित तो करना पड़ा है। इसके जरिए भारत की नौकरशाही पर कारपोरेट वर्चस्व को न केवल स्थापित करना है बल्कि आरक्षण को भी हायर लेवल पर पूरी तरह खत्म करने की योजना की झलक साफ-साफ दिखती है।
सामाजिक न्याय
क्रीमीलेयर मामला : पूरी भागीदारी मिली नहीं, उपजाति बंटवारे से वह भी छीन लेने की जुगत
कोर्ट राजनैतिक प्रभाव में आकर या दबाव के चलते ऐसे निर्णय ले रही है जो लगातार संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। आरक्षण को लेकर जो निर्णय अभी लिया गया है, उसमें कोर्ट ने बिना किसी डाटा के सबसे पहले ओबीसी में क्रीमीलेयर खोजा, फिर इडब्ल्यूएस की अवधारणा को लाया और बिना किसी सर्वेक्षण के ईडब्ल्यूएस के नाम पर अपरकास्ट को 10 फीसदी आरक्षण दिया। मतलब 15 फीसदी वाले समुदाय को लगभग 70 फीसदी आरक्षण देकर संविधान की सामाजिक न्याय की अवधारणा को ध्वस्त कर दिया गया। पढ़िए, आरक्षण पर आए फैसले की पड़ताल करता मनीष शर्मा का यह लेख-
सामाजिक न्याय
आरक्षण : पटना हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध सड़क पर क्यों नहीं आ रहा है विपक्ष
बिहार उच्च न्यायालय द्वारा राज्य में अतिरिक्त आरक्षण को अवैध घोषित कर दिया है। इस फैसले को लेकर विपक्ष में सुगबुगाहट तो है लेकिन इसे लेकर वह सड़क पर उतारने में हिचकिचाता दिख रहा है। यह उसकी भूमिका और नीयत पर कई सवाल खड़े करता है। खासतौर से तब जब 18वीं लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने सामाजिक न्याय और भागीदारी को स्पष्ट रूप से छोड़ दिया और यही विपक्ष का केंद्रीय मुद्दा रहा हो।