दुर्भाग्य से राजद के एक नेता की अभद्र भाषा में व्यक्त की गई प्रतिक्रिया ने मीडिया को जानबूझकर असल मुद्दे से ध्यान भटकाने में मदद की। इस विषय में मीडिया और ‘बुद्धिजीवियों’ की प्रतिक्रिया हास्यास्पद और पाखंडपूर्ण रही है। आनंद मोहन सिंह की 'जीभ काट डालता’ कहना कुछ और नहीं, बल्कि बिहार में राजपूतों को लामबंद करने का एक प्रयास था। धर्मनिरपेक्ष ब्राह्मणों ने मनोज झा की ओर से एक ऐसे मुद्दे का बचाव करने की कोशिश की है, जिसे उनके द्वारा संसद में जानबूझकर और पूरी तरह से संदर्भ से अलग जाकर उठाया गया था।
शूद्रों को गुमराह करने के लिए गीता का आधार थोड़ा व्यापक बनाया गया है और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इसे भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकला हुआ धर्म ग्रंथ बताते हैं। लेकिन दुर्भाग्य है कि इसी गीता को श्रीकृष्ण के वंशजों को पढ़ने की बात दूर रही, छूने तक का अधिकार नहीं था।