हर शहर के खुले और बाहरी क्षेत्रों में ऐसे लोग झोपड़ी बनाकर रहते हैं, जिनके पास किसी तरह का कोई काम नहीं होता। कभी-कभी मिल जानी वाली मजदूरी से परिवार चलते हैं। इस वजह से इनके पास शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी कोई सुविधा नहीं होती। इनमें अधिकतर लोगों के सरकारी दस्तावेज़ भी नहीं बन पाते हैं, जिससे इन्हें सरकारी योजना का फायदा मिल सके। ऐसे समुदाय के लिए कुछ करने की ज़िम्मेदारी राज्य की होती है लेकिन राज्य कभी ध्यान नहीं देता।
देश में अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा से सम्बंधित कानून वर्ष 2002 में 86वें संशोधन के माध्यम से लागू किया गया अर्थात इसे लागू हुए अभी मात्र 20-22 वर्ष ही हुए है लेकिन आज से सौ वर्ष पहले छत्रपति शाहूजी महाराज ने अपने राज्य कोल्हापुर में वंचित और बहुजन समाज के बच्चों को शिक्षित करने का नियम बनाया। महाराष्ट्र की धरती पर स्थित एक छोटे से राज्य कोल्हापुर के छत्रपति शाहूजी महाराज ने अपने राज्य की जनता के कल्याण की भावना से जो कार्य किए और साथ ही वंचितों, उपेक्षितों, शोषितों, निराश्रितों, अछूतों, शापितों, ताड़ितों और नारियों के उत्थान के लिए जो चुनौतीपूर्ण सफल संघर्ष किया वैसा उदाहरण पूरे विश्व के इतिहास में किसी शासक का किसी कालखंड में नहीं मिलता।