एक ज़माना था जब सिनेमा एक तरफ डॉक्टर को भगवान दिखाता था और दूसरी ओर मरीजों भगवान के भरोसे दिखाता था। घर वाले बेचारगी में मंदिर-मंदिर सिर पटकते थे। घंटे से सिर फोड़ते थे। एक जमाना आज है। जब चिकित्सा व्यवस्था भगवान भरोसे है और मरीज भी भगवान के भरोसे। सिनेमा कॉर्पोरेट भरोसे। आखिर वह कैसे दिखा सकता है कि देश के पूँजीपतियों ने सारी गरिमा और संवेदना निगल ली है। उन्हें सिर्फ मुनाफा चाहिए।