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दिल्ली विश्वविद्यालय : नियुक्ति में NFS का खेल जारी है

देश की सत्ता पर बैठे मुखिया पिछड़े और आदिवासी समुदाय से आते हैं, वे सभी देश को चलाने में सक्षम और योग्य हैं क्योंकि सभी आरएसएस से जुड़े हुए हैं। ये सभी देश को चलाने की योग्यता रखते हैं, चाहे इनकी शैक्षणिक योग्यता जो भी हो लेकिन पिछड़े समाज का उच्च शिक्षा प्राप्त एक भी उम्मीदवार शैक्षणिक संस्थानों में नियुक्ति के योग्य नहीं पाया जाता। जबकि संविधान में पिछड़े समाज के लिए विशेष अवसर के तहत ही आरक्षण का प्रावधान किया गया है। लेकिन जब उस अवसर के तहत चयन की बारी आती है तब उसका NFS करके उस अवसर की ही हत्या कर दी जाती है। इससे एक बात सामने आती है कि यह संस्थान जाति और ब्राह्मणवाद का खुला खेल खेलता हुआ NFS का खेल खेलते हुए पिछड़ी जातियों के युवाओं के भविष्य को दांव पर लगा रहा है। संविधान में पिछड़े समाज के लिए विशेष अवसर के तहत ही आरक्षण का प्रावधान किया गया है। लेकिन जब उस अवसर के तहत चयन की बारी आती है, तब NFS कर उस अवसर की ही हत्या कर दी जाती है।

दिल्ली विवि के प्रो जीएन साईबाबा माओवादी संलिप्तता मामले में बरी होने के बाद जेल से बाहर आए

आज बॉम्बे हाई कोर्ट ने की दो न्यायधीशों की बेंच ने यह अहम फैसला सुनाया। यह फैसला जस्टिस विनय जोशी और वाल्मीकि एसए मेनेजस की बेंच ने सुनाया। फैसले में यह कहा गया कि दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को उन पर लगे मामले से बरी किया जाता है और उम्र कैद की सजा अब रद्द की जाती है।

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