Saturday, July 27, 2024

ज्ञानप्रकाश यादव

लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं और सम-सामयिक, साहित्यिक एवं राजनीतिक विषयों पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन करते हैं।

सरकारी नौकरियों में आरक्षण के बावजूद क्यों पूरी नहीं हो पा रही है पिछड़ों, दलितों एवं आदिवासियों की भागीदारी?

भारत में आरक्षण, समाज के सबसे पिछड़े और वंचित समुदाय को मुख्य धारा में शामिल करने की जाति आधारित सकारात्मक कार्रवाई है। भारतीय संविधान के अनुसार केंद्र और राज्य सरकार में सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए शिक्षा, रोजगार और राजनैतिक निकायों में सीटों का प्रतिशत निर्धारित किया गया है। लेकिन  मनुवादी व्यवस्था ने वर्ष 2019 में अपने लिए 10 प्रतिशत सुदामा कोटा हासिल कर लिया, जो उनकी आबादी के हिसाब से है लेकिन पिछड़ों को उनकी आबादी के हिसाब से आधा भी नहीं मिला। इसलिए यह मांग की जाती रही है ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी।'

दिल्ली विश्वविद्यालय में मनुवादियों की NFS लीला रुकेगी कब?

प्राचीन समय से मनुवादियों ने समाज के दलित-वंचित समुदाय को शिक्षा लेने से वंचित रखने के लिए मनुस्मृति का सहारा ले उन्हें भरमाया। जब-जब वे पढ़ना चाहे, तब-तब पढ़ने से रोकने के लिए उन्हें अपमानित कर अपना पुश्तैनी काम करने के लिए कहा। देश में संविधान -लागू होने के बाद सभी को समान अधिकार प्राप्त हुआ, उसके बाद, जब ओबीसी,एससी और एसटी वर्ग के लोग शिक्षित हो बेहतर योग्यता से सामने आने लगे तब उनकी बेचैनी सामने आने लगी। इस वजह से उन्हें दिये गए आरक्षण को किसी भी तरह से रोकने के लिए शातिर तरीके अपना रहे हैं। अभी लगातार अनेक विश्वविद्यालयों से आरक्षित पदों के उम्मीदवारों को NFS करने की सूचना आ रही है। सवाल यह उठता है कि क्या सभी योग्यता सवर्णों में और सारी अयोग्यता ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग में है।

नीट पेपरलीक व्यावसायिक शिक्षा का सबसे बड़ा घोटाला है

4 जून को जब से नीट परीक्षा के नतीजे आए हैं, तब से नीट परीक्षा को लेकर चल रहे विवाद और आंदोलन खत्म होने का नाम नहीं ले रहे। स्वाभाविक है क्योंकि यह मेहनती और गरीब छात्रों के भविष्य का सवाल है। सुप्रीम कोर्ट ने दुबारा परीक्षा लेने से इंकार कर दिया, यह एक तरह से उन लोगों के पक्ष में खड़े होने की बात है, जिन्होंने पेपर खरीदने के लिए लाखों रुपए खर्च किए और उन अभ्यथियों का चयन हो गया है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट, सरकार और परीक्षा लेने वाली एजेंसी एनटीए पर सवाल उठना ही चाहिए।

प्रयागराज : आखिर कब तक विश्वविद्यालयों में दलित, पिछड़े और आदिवासियों को NFS किया जाता रहेगा?

देश के विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसरों के पदों पर साक्षात्कार के आधार पर चयन किया जाता है। विश्वविद्यालयों की साक्षात्कार समितियों में अधिकतम एक्सपर्ट सवर्ण प्रोफेसर होते हैं।  इसलिए वे बड़ी आसानी से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के कोटे की सीट को None Found Suitable कर देते हैं। ताजा मामला उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, प्रयागराज का है।

Loksabha chunav 2024 : वोट की चोट से पहले युवा बेरोजगारी, अग्निवीर योजना, पेपर लीक मुद्दा और किसानों की समस्या पर गौर करना...

केन्द्र की मोदी सरकार की नीतियों से युवाओं में न सिर्फ निराशा और हताशा है बल्कि आक्रोश का एक गुबार भी उनके अन्दर है । बेरोजगार युवाओं के अन्दर का यह गुबार वोट की चोट के रूप में देखने को मिलेगा, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता।

आरएसएस प्रमुख और भाजपा, आरक्षण समीक्षा की आड़ में पिछड़ों को उचित प्रतिनिधित्व से दूर रखने की मंशा रखते हैं

कुछ समय पहले तक आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ओबीसी आरक्षण के सख्त खिलाफ थे और आरक्षण को लेकर लगातार विरोध में बयान दिया करते थे लेकिन चुनाव आते ही उनके सुर बदल गए क्योंकि देश में ओबीसी का बड़ा वोट बैंक हैं।

Lok Sabha Election : महिलाओं को दिए गए टिकट की संख्या पर राजनैतिक दलों की मंशा को लेकर सवाल उठना जरूरी

वर्ष 2023 में संसद में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लिए नारी शक्ति वंदन अधिनियम लागू हुआ, जिसमें उन्हें 33 प्रतिशत आरक्षण देने का नियम बना। महिलाओं ने जश्न मनाया और सभी दलों ने इसका स्वागत किया लेकिन जमीनी हकीकत देखें तो किसी भी राष्ट्रीय या बड़े क्षेत्रीय दलों ने इस अधिनियम के आधार पर टिकट का बंटवारा नहीं किया। देश के सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में इसका आकलन कर इस बात की वास्तविकता देख आने वाले दिनों में राजनैतिक दलों की भूमिका पर सवाल खड़ा होना स्वाभाविक है

Lok Sabha Election : शिक्षा और उससे जुड़े मुद्दे क्यों नहीं बन रहे हैं जरूरी सवाल?

पिछले दस वर्षों में शिक्षा का स्तर जितना गिरा है उतना पहले कभी नही। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी संस्थानों में विज्ञान और तर्क को दरकिनार कर धर्म को केंद्र में रखा गया। 2024 के लोकसभा चुनाव में शिक्षा जैसा महत्त्वपूर्ण मुद्दा जनता की नजर में क्यों नहीं है?

Lok Sabha Election : बेरोजगारी, महंगाई और अग्निवीर जैसे मुद्दे पहले चरण के मतदान में हावी रहेंगे ?

आखिर क्यों नरेन्द्र मोदी की मीडिया द्वारा गढ़ित छवि को तमिलनाडु की जनता नकार देती है, इस पर उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, गुजरात एवं महाराष्ट्र के युवाओं एवं आम नागरिकों को भी विचार करना चाहिए।

Lok Sabha Election : क्यों कम हो रही है संसद में पिछड़ी जातियों की भागीदारी?

मंडल बनाम कमंडल यानी ओबीसी आरक्षण बनाम राम मंदिर की लड़ाई में उन पिछड़ी जातियों के साथ आरएसएस और भाजपा ने खुलेआम धोखा किया है, जिन्होंने उसके बहकावे में आकर शैक्षिक एवं आर्थिक अधिकारों के लिए लागू किये गए ओबीसी आरक्षण के बजाय राम मंदिर आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था।

Loksabha chunav : क्या अरविंद राजभर का भाजपा कार्यकर्ताओं से घुटनों के बल बैठकर माफ़ी मांगना पिछड़ों के हित में है?

आम जनता के प्रतिनिधि अपनी गलतियों के लिए भले ही जनता से कभी माफी नहीं मांगे लेकिन कीचड़ की राजनीति में शामिल होने के लिए किस हद तक झुककर सार्वजनिक रूप से माफी मांगते हैं, इसका एक नमूना अभी हाल में ही सामने आया, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार के उप-मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक पिछड़े समाज के चर्चित नेता ओमप्रकाश राजभर के बेटे डॉ. अरविंद राजभर को घुटनों के बल बैठाकर माफ़ी मंगवा रहे हैं ताकि भाजपा की तरफ से टिकट पक्का हो जाये।