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दहेज के नाम पर प्रतिदिन लगभग 20 लड़कियां मारी जा रही हैं

बरसों से शादी के समय दिए जाने उपहार भले ही लड़कोयों को दिए जाते रहे हों लेकिन वास्तव में यह दहेज है, जिसे लड़के वाले मुंह खोलकर मांगते हैं, जैसे अपने बेटे की बोली लगा रहे हों। लड़कीं के माता-पिता, बेटी खुश रहेगी इसके चलते उनकी मांग पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ते लेकिन इसके बाद भी दहेज के नाम पर लड़कियों की हत्याएं आए दिन सुनने को मिल रही है। साल 2017 से 2021 के बीच देश भर में दहेज के नाम पर करीब 35,493 हत्या के मामले दर्ज किए गए थे, यानी प्रतिदिन लगभग 20 मामले दहेज के नाम पर होने वाली हत्या के दर्ज किए गए, जो बहुत ही चिंता की बात है।

दहेज प्रेमी समाज औरतों की बराबरी का शत्रु है

पिछले वर्ष के आखिरी महीने में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने साल 2022 का आपराधिक आंकड़ा जारी किया। जिसमें बताया गया है कि...

घरेलू हिंसा सहते रहने से मैंने विद्रोह करना बेहतर समझा : शशिकला गौतम

शशिकला गौतम नौगढ़ में ग्राम्या संस्थान, लालतापुर द्वारा संचालित स्कूल में पढ़ाती है। इसके साथ ही वह संस्था द्वारा संचालित चिराग केंद्र में किशोरियों को सिलाई-कढ़ाई भी सिखाती है। आगे वह जीएनएम बनना चाहती है। आज वह भविष्य के नए सपने देख रही है लेकिन कुछ वर्ष पहले तक उसका जीवन बहुत से दुखों से भर गया था। नौगढ़ के मझगवा के सीमांत खेतिहर राम अशीष गौतम की पुत्री शशिकला अपने दो भाइयों से बड़ी है।

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