रोजगार के हर क्षेत्र में महिलाएं मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। चाहे वह छोटी-सी चाय की दुकान हो, कपड़े प्रेस करने का काम हो, साप्ताहिक बाजार में कपड़े और घरेलू सामान बेचना हो या फिर बागवानी करना - हर जगह महिलाएं न केवल काम कर रही हैं, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी पैदा कर रही हैं। लेकिन उनका यह सफर आसान नहीं है। इन महिलाओं को हर दिन कई समस्यायों का सामना करना पड़ता है।
हमारे देश में सरकार ग्रामीण क्षेत्रों के विकास को ध्यान में रखते हुए कई लाभकारी योजनाएं संचालित करती है, इनमें रोज़गार से जुड़ी कई योजनाएं भी होती हैं। लेकिन अक्सर यह देखा जाता है कि ग्रामीण इन कल्याणकारी योजनाओं का बहुत अधिक लाभ नहीं उठा पाते हैं। इसका एक कारण जहां संबंधित विभाग द्वारा जमीनी स्तर पर इन योजनाओं के प्रचार-प्रसार में कुछ कमी का रह जाना होता है, तो वहीं दूसरी ओर ग्रामीणों का इस संबंध में पूर्ण रूप से जागरूक नहीं होना भी एक बड़ा कारण होता है।
भारत जैसे विकासशील देश के ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। जिसके कारण परिवार के पुरुष रोजगार की तलाश में शहरी क्षेत्रों में पलायन को मजबूर हैं। वर्ष 2024-2025 के बजट में केंद्र सरकार ने मनरेगा समेत रोजगार के कई क्षेत्रों में बजट आवंटन को बढ़ाया है। लेकिन इसके बाद भी सरकार को चाहिए कि गाँव में ही रोजगार के ऐसे संसाधन उपलब्ध कराये ताकि उन्हें शहर जाने की जरूरत ही न पड़े।
गैर सरकारी संस्था उरमूल द्वारा उपलब्ध कराये गये काम की बदौलत राजस्थान के लूणकरणसर इलाके की ग्रामीण महिलाएं न सिर्फ आत्मनिर्भर बन रही हैं बल्कि परिवार की आर्थिक तंगी को भी दूर कर रही हैं।
लोहार गाँव में मात्र दस प्रतिशत युवा ही कॉलेज तक पहुँच पाते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण अधिकतर युवा 10वीं या बारहवीं के बाद पढ़ाई छोड़कर परिवार के साथ रोजगार की तलाश में पलायन करने लगते हैं। घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए लड़के स्कूली जीवन में ही बाहर जाकर कमाने का दृढ़ निश्चय कर लेते हैं। ऐसे में उनमें उच्च शिक्षा के प्रति लगाव की उम्मीद करना बेमानी होता है।
इस क्षेत्र में भूविस्थापितों के छोटे-बड़े सभी संगठन एकजुट हो गए हैं और उन्होंने आर्थिक नाकाबंदी का आह्वान किया था। इस आह्वान पर खनन प्रभावित 54 गांवों के हजारों ग्रामीण सड़कों पर उतर गए और आंदोलन के दूसरे दिन उन्होंने 8 किमी. लंबे कोयला खदान के अंदर जाकर सतर्कता चौक और सायलो, (जहां से ट्रेनों में परिवहन के लिए कोयला भरा जाता है और साइडिंग में जाता है) पर भू विस्थापितों ने कब्जा जमा लिया था। इस आंदोलन में महिलाएं भी अपने बच्चों को लेकर भारी संख्या में शामिल थी और रात उन्होंने सड़कों पर ही गुजारी। इससे एसईसीएल प्रबंधन की रात में कोयला परिवहन की योजना भी असफल हो गई।
बिहार सरकार अनुसूचित जाति/जनजाति, पिछड़ी जाति और सामान्य वर्ग को अलग-अलग दर से अनुदान दिया जाता है। सामान्य वर्ग को 50 प्रतिशत एवं अन्य जातियों को 60 प्रतिशत तक सब्सिडी देने का प्रावधान है। 20 बकरियों के साथ एक बकरा पालने के लिए लगभग 2 लाख की राशि दी जा रही है। इसके लिए ब्लाॅक व जिला स्तर पर पशुपालन विभाग में फाॅर्म आवेदन करना होता है। आवेदन की जांचोपरांत लाभुक को सब्सिडी राशि बैंक खाते में स्थानांतरित कर दिया जाता है। राज्य सरकार प्रोत्साहन राशि दो किस्तों में देती है। इसके लिए बैंक से ऋण भी मुहैया कराया जाता है। सभी प्रक्रिया पशुपालन विभाग और बैंक के जरिए किसानों, मजदूरों व भूमिहीनों की आजीविका के लिए उपलब्ध कराने का प्रावधान है।