राहुल गांधी के सामाजिक न्याय के बड़े दावों के बावजूद, हरियाणा में दलितों तक पहुंचने के लिए कोई सामूहिक प्रयास नहीं किया गया। ऐन वक्त पर अशोक तंवर की एंट्री पार्टी में दलित वोट वापस नहीं ला सकी और वजह साफ है। कांग्रेस को समझना होगा कि राजनीतिक दल सामाजिक न्याय का आंदोलन नहीं हैं। एक आंदोलन एक विशेष एजेंडे पर एक वर्ग को लक्षित करके चल सकता है लेकिन राजनीति को समावेशी होना चाहिए और सभी समुदायों के साथ जुड़ाव सुनिश्चित करना चाहिए।
'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' योजना के शुरुआती साल 2014 में लिंगानुपात में कुछ सुधार के बाद हरियाणा में यह फिर से बिगड़ने लगा है। एक साल में ही हरियाणा में लिंगानुपात में बड़ा सुधार हुआ। एक हज़ार लड़कों के मुकाबले 900 लड़कियों के जन्म के साथ ही यह बीते 20 साल के सबसे अच्छे स्तर पर आ गया था। लेकिन उसके बाद फिर स्थिति बिगड़ गई। क्या हरियाणा में लिंगानुपात चुनावी मुद्दा नहीं बन सकता। जब हम बिजली, पानी और सड़क की मांग करते हैं तो यह राजनीतिक मुद्दा भी बनता है। लिंगानुपात की समस्या को भी गंभीरता से से लेते हुए इसे गंभीर और जरूरी मुद्दा राजनैतिक दल बना सकते हैं, जो सीधे रूप से सामाजिक ताने-बाने पर असर डालेगा।