Tuesday, January 14, 2025
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

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historian Subhash Chandra Kushwaha)

कुलीनतावादी लेखक सुविधाजनक रास्ते पर ही रहते हैं.. (कथाकार, इतिहासकार सुभाषचन्द्र कुशवाहा से अपर्णा की बातचीत )

किसी साहित्यिक कृति में कथ्य की ही सामाजिकता नहीं होती, उसके शिल्प और भाषा की भी सामाजिकता होती है। इसलिए साहित्य के नए शिल्प और भाषा की सार्थकता, उसकी सामाजिकता से आंकी जानी चाहिए। बेशक उपेक्षित या अप्रत्याशित विषय को लेकर रचना का निर्माण किया जा सकता है। बशर्ते कि उपेक्षित या अप्रत्याशित विषय का, समय और सामाजिकता से नाता बन रहा हो या बन गया हो

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