हिन्दी आलोचना को एक नयी धारा 'अम्बेडकरवादी-मार्क्सवादी' प्रो चौथीराम यादव की ही बदौलत मिली। वे आलोचना को नए ढंग से प्रस्तुत करते थे। वे आलोचना को सिर्फ साहित्य से ही नहीं, बल्कि समाज से जोड़कर देखते थे। काशी हमेशा कबीर के बाद प्रो चौथीराम यादव को याद करेगी।