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ग्राउंड रिपोर्ट

श्रद्धांजलि : ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा में याद किए गए प्रो. चौथीराम यादव

हिन्दी आलोचना को एक नयी धारा 'अम्बेडकरवादी-मार्क्सवादी' प्रो चौथीराम यादव की ही बदौलत मिली। वे आलोचना को नए ढंग से प्रस्तुत करते थे। वे आलोचना को सिर्फ साहित्य से ही नहीं, बल्कि समाज से जोड़कर देखते थे। काशी हमेशा कबीर के बाद प्रो चौथीराम यादव को याद करेगी।

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के हिन्दी विभाग में आज विभागाध्यक्ष प्रो० उमेश कुमार की अध्यक्षता में सुप्रसिद्ध आलोचक प्रो चौथीराम यादव की स्मृति में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। इस दौरान वक्ताओं ने प्रो. चौथीराम यादव को सहज निर्भीक और कबीर की परंपरा का आलोचक भी कहा।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो.उमेश कुमार ने कहा कि प्रो. चौथीराम यादव आलोचना को नए ढंग से प्रस्तुत करते थे। वे आलोचना को सिर्फ साहित्य से ही नहीं, बल्कि समाज से जोड़कर देखते थे। कबीर पर उन्होंने सब से अलग हटकर अपनी आलोचना प्रस्तुत की है।

डॉ सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने प्रो चौथीराम यादव जी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा ‘मौजूदा दौर में प्रो. चौथीराम यादव जी का गुजर जाना साहित्य और संस्कृति जगत पर बज्र प्रहार है। बिछावन पकड़े मरते हुए बहुत लोगों को देखा है लेकिन कलम पकड़े हुए मौत को वरण करने वाले बहुत कम ही लोग होते हैं। वैसे ही कलम पकड़कर गुजर जाने वाले योद्धाओं में सुप्रसिद्ध लोकपक्षीय मार्क्सवादी आलोचक प्रोफेसर चौथी राम यादव थे। काशी हमेशा अपने कबीर के साथ दूसरे कबीर चौथीराम यादव जी को याद करती रहेगी। जनता और जनान्दोलनों के सिद्ध एवं प्रतिबद्ध आलोचक प्रो. चौथीराम यादव थे।

डॉ सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने आगे कहा हिंदी आलोचना की बगिया में बुद्ध, कबीर, रैदास, फुले-दंपति, पेरियार,अंबेडकर से लेकर मार्क्स, भगतसिंह, मुक्तिबोध, नागार्जुन और रामाशंकर यादव विद्रोही तक के फूल उगाने वाले बड़े लोकपक्षीय मार्क्सवादी आलोचक का ही नाम चौथीराम यादव है। हिन्दी आलोचना की सर्वथा नयी धारा ‘अम्बेडकरवादी -मार्क्सवादी धारा’ के आविष्कारक और बड़े आलोचक प्रो चौथीराम यादव ही थे। उन्हें मेरा आखिरी सलाम।

Prof. is no more. Chauthiram Yadav

सनद रहे कि हिन्दी साहित्य के जाने माने आलोचक, सामाजिक बुद्धिजीवी एवं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सेवानिवृत हिन्दी विभागाध्यक्ष  प्रो० चौथीराम यादव का 12 मई को बनारस स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। वे 83 वर्ष के थे। हिन्दी आलोचना के प्रख्यात साहित्यकार डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी के अंतिम शिष्य प्रो० चौथीराम यादव की कबीर, छायावाद और दलित साहित्य में गहरी रुचि थी। जौनपुर के छोटे से गांव से निकल कर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय तक पहुंचे उनकी सारी शिक्षा भी वहीं हुई और वहीं पर प्रोफेसर भी बने। कार्यक्रम में मंच संचालन विभाग के सह–प्राचार्य आनंद प्रकाश गुप्ता ने किया।

इस दौरान मौके पर विभाग के सहायक प्राध्यापिका डॉ मंजरी खरे, डॉ गजेंद्र भारद्वाज, कनीय शोधप्रज्ञ दुर्गानंद ठाकुर,रोहित कुमार,अमित कुमार, सुभद्रा कुमारी, बेबी कुमारी, रूबी कुमारी, कंचन कुमारी और साथ ही द्वितीय एवं चतुर्थ छमही के छात्र–छात्राएं भारी संख्या में उपस्थित थे।

कार्यक्रम के अंत में सामूहिक रूप से दो मिनट का मौन धारण कर प्रो. चौथीराम यादव को भावभीनी श्रद्धांजलि भी दी गई।

गाँव के लोग
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