भारतीय जीवन बीमा निगम के अभिकर्ताओं के बीच सूचनाओं को छिपाने को लेकर कई तरह की गलतफहमियाँ सामने आने का मामला सामने आने लगा है। दूसरी तरफ अभिकर्ताओं के ऊपर प्रबंधन द्वारा कई तरह के दबाव और शोषण का भी मामला लंबे समय से उठ रहा है। इसको लेकर पिछले दिनों अभिकर्ताओं ने आंदोलन भी किया। आल इंडिया लाइफ इंश्योरेंस एजेंट्स असोसियेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष का कहना है कि प्रबंधन न केवल अभिकर्ताओं के हितों पर कुठाराघात कर रहा है बल्कि वह अपने रिकॉर्ड भी नहीं रख रहा है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं में भी प्रबंधन ने यह कहा है।
सार्वजनिक क्षेत्र के सबसे बड़े और मजबूत उपक्रमों में शुमार भारतीय जीवन बीमा निगम की सतह पर सब चंगा नहीं है। नयी नियमावली को लेकर प्रबंधन और अभिकर्ताओं के बीच रस्साकसी जारी है। बातचीत के असफल प्रयास के बाद प्रदर्शन के बाद अब भी अनिश्चितकालीन असहमति आंदोलन जारी है। एलआईसी प्रबंधन द्वारा कमीशन जब्त करने और लाइसेन्स खत्म करने की धमकी के चलते अभिकर्ता संगठनों ने अपनी रणनीति बदल ली है लेकिन वे शांत नहीं बैठे हैं। अभिकर्ताओं को दबाकर रखने और अपनी शर्तों पर जीने के लिए विवश करने की बात से यह स्पष्ट है कि एलआईसी अब उनको अपनी सबसे कमजोर कड़ी मान रहा है। क्या होगा इसका परिणाम? क्या प्रबंधन, बीमा व्यवसाय अथवा अभिकर्ताओं के लिए यह घातक होगा? अपर्णा का आकलन।
देश भर के बीमा अभिकर्ता आंदोलन पर हैं। उनका कहना है की जीवन बीमा अभिकर्ता अधिनियम 1972 भारतीय जीवन बीमा अभिकर्ता (संशोधन) अधिनियम 2017 अभिकर्ताओं के हितों के अनुकूल नहीं हैं। ये दोनों अधिनियम अभिकर्ताओं के अधिकारों को खत्म करने और उनके दमन का रास्ता साफ करने के औज़ार हैं। उनका कहना है कि 1 अक्तूबर 2024 को लाये गए निर्णय में निगम ने कई ऐसे नियम लागू किए जो अभिकर्ताओं और पालिसीधारकों दोनों के लिए खतरनाक हैं। अभिकर्ता संगठनों द्वारा इसका विरोध किया गया लेकिन प्रबंधन ने उनकी कोई बात नहीं मानी। अंततः 24 मार्च से वे अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए।