पूरे देश में मनरेगा मजदूरों की हालत एक सी है। सरकार की इस योजना में न तो 100 दिन का काम मिल रहा है न ही उनके द्वारा किये गए काम की मजदूरी का भुगतान ही हो रहा है। आजमगढ़ में किसान नेताओं ने कहा कि लंबित देनदारी की स्थिति मनरेगा योजना में लगातार कम हो रहे बजटीय आवंटन से जन्म ले रही है। पिछले दस सालों में केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा के लिए हुए बजट आवंटन में लगभग 40 प्रतिशत की गिरावट हुई है।
मनरेगा की शुरुआत सौ दिन की मजदूरी के गारंटी के साथ हुई थी लेकिन बीस वर्ष भी नहीं बीते कि अब यह योजना मजदूर विरोधी गतिविधियों में तब्दील हो गई। गाँव में ज्यादातर काम मशीनों से कराया जा रहा है, जिसके बाद मस्टर रोल में नाम मजदूरों के चढ़ाए जा रहे हैं और उनसे अंगूठा लगवाकर मजदूरी प्रधान और रोजगार सेवक हड़प रहे हैं। इस तरह मजदूरों को काम से वंचित किया जा रहा है। हमने वाराणसी के कपसेठी ब्लाक के नवादा नट बस्ती में पता किया, जिसमें यह बात सामने आई कि वर्ष भर में मुश्किल से उन्हें 10 दिन ही काम मिलता है और मजदूरी आने में महीनों लग जाते हैं। इस तरह देखा जाए तो मजदूरों के लिए मनरेगा दु:स्वप्न बनकर रह गया है। नवादा नट बस्ती से लौटकर अपर्णा की रिपोर्ट
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के कारण वाराणसी हमेशा चर्चा में रहता है क्योंकि अक्सर यहाँ से हजारों करोड़ की विकास परियोजनाएं लांच की जाती हैं लेकिन ये योजनाएं भरे पेट वालों का राजनीतिक गान भर हैं। वास्तविकता यह है कि हाशिये पर रहनेवाले समाजों के लिए इनका अर्थ एक जुमला भर है। वाराणसी समेत पूर्वांचल की बहुत बड़ी आबादी अपने रोजगार से हाथ धोती जा रही है। आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले सवा चार करोड़ लोग हैं। अर्थात उत्तर प्रदेश का हर पाँचवाँ व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है। न उसके पास रोजगार है, न जमीन है, न शिक्षा और न ही अच्छा स्वास्थ्य है। वह आजीविका कमाना चाहता है लेकिन गांवों तक मशीनों से काम होने लगा है और इस प्रकार उनका रोजगार हमेशा के लिए छिन गया है। वाराणसी जिले के हरहुआ ब्लॉक के चक्का गाँव में रहनेवाले मुसहर समुदाय के सामने आज रोजगार और निवाले की गंभीर समस्या खड़ी है। उनकी ज़मीनों पर दबंगों का कब्ज़ा है। उनकी अनेक बुनियादी समस्याएं हैं। चक्का गाँव से अपर्णा की यह रिपोर्ट।
भारत जैसे विकासशील देश के ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। जिसके कारण परिवार के पुरुष रोजगार की तलाश में शहरी क्षेत्रों में पलायन को मजबूर हैं। वर्ष 2024-2025 के बजट में केंद्र सरकार ने मनरेगा समेत रोजगार के कई क्षेत्रों में बजट आवंटन को बढ़ाया है। लेकिन इसके बाद भी सरकार को चाहिए कि गाँव में ही रोजगार के ऐसे संसाधन उपलब्ध कराये ताकि उन्हें शहर जाने की जरूरत ही न पड़े।
गांव में मनरेगा के अतिरिक्त रोजगार का कोई अन्य विकल्प नहीं है, इसलिए जब लोगों को मनरेगा के अंतर्गत काम नहीं मिलता है तो वह या तो मजदूरी करने शहर जाते हैं अथवा गांव से पलायन कर महानगरों या औद्योगिक शहरों की ओर चले जाते हैं। वर्ष 2024-25 के बजट में मनरेगा समेत रोजगार के कई क्षेत्रों में बजट आवंटन को बढ़ाया गया है। देखना यह होगा कि आने वाल समय में मनरेगा मजदूरों को काम मिलने के बाद समय पर उचित भुगतान मिलेगा या नहीं?
केंद्र सरकार द्वारा पश्चिम बंगाल को मनरेगा का बजट नहीं दिये जाने पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नाराजगी जाहिर करते हुए 21 लाख मनरेगा मजदूरों को भुगतान करने की प्रक्रिया शुरू कर दे है।
नयी दिल्ली। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत मजदूरी भुगतान का भुगतान अब आधार-आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) के माध्यम से...