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गाँव से शहर तक : ज़िंदगी हर दिन नया पाठ पढ़ाती है

वरिष्ठ कवि तेजपाल सिंह तेज एक बैंकर रहे हैं। वे आगे चलकर एक प्रमुख लेखक, कवि और ग़ज़लकार के रूप ख्यातिलब्ध हुये। उनके जीवन में ऐसी अनेक कहानियां हैं जिन्होंने उनको जीना सिखाया। इनमें बचपन में दूसरों के बाग में घुसकर अमरूद तोड़ना हो या मनीराम भैया से भाभी को लेकर किया हुआ मजाक हो, वह उनके जीवन के ख़ुशनुमा पल थे। एक दलित के रूप में उन्होंने छूआछूत और भेदभाव को भी महसूस किया और भोगा है। वह अपनी प्रोफेशनल मान्यताओं और सामाजिक दायित्व के प्रति हमेशा सजग रहे हैं। इस लेख में उन्होंने उन्हीं दिनों को याद किया है किकिस तरह उन्होंने गाँव के शरारती बच्चे से अधिकारी तक की अपनी यात्रा की। उन्होंने चतुर्थ श्रेणी कर्मचरियों की भर्ती के लिए बने बैंक प्राधिकरण के इंटरव्यू बोर्ड में सम्मिलित होने पर अनुसूचित जाति का कोटा पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उल्लेखनीय है कि तेजपाल जी बारह बार इंटरव्यू बोर्ड के सदस्य रहे।

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