Sunday, May 19, 2024

तेजपाल सिंह 'तेज'

लेखक हिन्दी अकादमी (दिल्ली) द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार तथा साहित्यकार सम्मान से सम्मानित हैं और 2009 में स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त हो स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं।

भाजपा और आरएसएस की हिंदुत्ववादी मानसिकता स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के लिए सबसे बड़ा खतरा है

बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर ने देश में हिंदुत्ववादी ताकतों के मंसूबों को भापते हुए उस समय जो चिंता व्यक्त की थी वह अब पहले से कहीं ज्यादा खतरनाक स्थिति में पहुँच चुकी है। ऐसे में हमें आपसी भाई चारे को बनाये रखते हुए बीजेपी और आरएसएस के लोगों से दूर रहने की जरूरत है।

अग्निवीर योजना : दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक युवाओं के खिलाफ भाजपा-आरएसएस की बड़ी साजिश

अग्निवीर योजना की शुरुआत एक सोची समझी साजिश का हिस्सा है। भारतीय सेना में दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक युवाओं को शामिल होने से रोकने के लिए एक गहरा इकोसिस्टम तैयार किया गया है। नरेंद्र मोदी और आरएसएस द्वारा तैयार की गई इस रणनीति को समझना एक सामान्य भारतीय नागरिक के लिए आसान नहीं है।

भाजपा-आरएसएस की राजनीति हमेशा से ही दलित,पिछड़ा,अल्पसंख्यक विरोधी रही है

भाजपा और आरएसएस हमेशा से दलित,ओबीसी विरोधी रहे हैं। देश के संविधान को बदलने के लिए इस चुनाव में 400 पार का नारा दिया लेकिन संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने को लेकर जनता की तरफ से आ रहे विरोध को देखते हुए इन्होंने चुनाव का नेरेटिव बदल इनके शुभचिंतक होने की बात बार-बार दोहरा रहे हैं।

भाजपा ने देश के लोकतंत्र को बंदी बना लिया है, हमें लोकतंत्र को फिर से हासिल करना होगा

हालिया हालात में मोदी के सबसे चतुर राजनेता होने का एक कारण यह है कि उन्होंने इस बात पर काम किया है कि यदि आप अपनी पार्टी को स्थायी चुनाव मोड में रखते हैं तो आप उन घनी आबादी वाले राज्यों में जनता का समर्थन बनाए रख सकते हैं जो आपका आधार हैं। भाजपा के लोकतंत्र विरोधी चरित्र को उजागर करता यह लेख पढिए...

गाँव में जब मुझे खटोला में बिठाकर स्कूल ले जाया गया..

'मेरा गाँव' कॉलम में उन लोगों की कहानी होती है, जिन्होंने गाँव को जिया ही नहीं बल्कि भरपूर जिया है। इस में आज तेजपाल सिंह 'तेज' अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए यह बता रहे हैं कि उनका गाँव, अलाबास बातरी, बुलंदशहर (उप्र) बचपन में कैसा था? अपने गाँव को याद करते हुए कैसे लगता है और उन्हें गाँव ने कैसे तैयार किया?

क्या भारतीय राजनीति अब भगवानों को भी जमीन पर उतार लाने में सक्षम?

यह बड़े ही दुख की बात है कि राजनीति का मूल काम लोकतंत्र  की रक्षा व जनता की समस्याओं को  मज़बूतो के साथ हल करना है किंतु हो इसका उलट रहा है। राजनीति को न लोकतंत्र की चिंता है और न जनता की चिंता, अगर कुछ चिंता  है तो वह बस सत्ता पर बने रहने की है।

राजतंत्र के शिकंजे में कसमसाता देश का लोकतंत्र

लोकतंत्र में चुनाव में जीते हुए लोग जब शासन व्यवस्था संभालते हैं, तो वे ऐसे नियम और कानूनों का प्रावधान करते हैं, जिससे कि लोगों का कल्याण हो सके। इन नियम कानूनों के लिए सरकार पूरी तरह से जनता के प्रति जवाबदेह होती है।