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Muneer Bakhsh Aalam
सोनभद्र के साहित्यिक गेटवे : सोनभद्र यात्रा – 2
उम्मीद करता हूँ कि सोनभद्र की मेरी इस यात्रा की पहली शृंखला अब तक आप पढ़ चुके होंगे नहीं पढे हैं तो नीचे दिए लिंक पर जाकर इसे देख सकते हैं।
मैंने पहली बार मुनीर बख्श आलम को जाना और चकित रह गया
आखिर मुनीर बख्श आलम किस तरह से दो धर्मों के बीच बिना किसी भेदभाव के संबंध सूत्र बने हुये थे। किस तरह आज भी राबर्टसगंज के लोग उन्हें अपने दिल में बसाये हुये हैं। उनकी बातों का जिक्र करते हुये आज भी लोग कहते हैं कि मुनीर बख्श आलम हिन्दू मुसलमान में कभी बंटे ही नहीं वह हमेशा सिर्फ और सिर्फ इंसान होने के लिए व्यग्र रहे।

