TAG
Myth of Merit and Equal Education for All
मेरिट का मिथक और सबके लिये समान शिक्षा
आज देश और प्रदेश में उन्हीं लोगों की सरकार है जो स्वयं को मेरिटधारी कहते हुए नहीं अघाते लेकिन ये जिस प्रकार अक्षम और नकारा साबित हुए हैं उसकी मिसाल वे स्वयं हैं। इनकी समझ में कुछ भी उसी प्रकार नहीं आ रहा है जिस प्रकार शोलापुर की आम सभा में बोलते हुए तिलक ने अपनी नासमझी को स्वीकार किया था । लेकिन इनकी नासमझी ने मेरी इस समझ की पुष्टि जरूर की है कि वर्ण व्यवस्था का निर्धारण योग्यतम से अयोग्यतम की बजाय अयोग्यतम से योग्यतम की ओर अग्रसर व्यवस्था है।

