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रामचरितमानस में स्त्रियों की कलंकगाथा (भाग –2)

 छन सुख लागि जनम सत कोटी। दुख न समुझ तेहि सम को खोटी।। बिनु श्रम नारि परम गति लहई। पतिब्रत  धर्म  छाड़ि  छल  गहई।। अर्थात, क्षण...

रामचरितमानस में स्त्रियों की कलंकगाथा (भाग – 1)

तुलसीदास कृत रामचरित मानस उत्तर भारत की पिछड़ी जातियों के लिए धर्मग्रंथ बना दिया गया। बहुत स्पष्ट रूप से बहुजन संतों और समाजों को अपमानित करने वाली इस किताब की यह स्वीकार्यता यूं ही नहीं है बल्कि बहुजन समाजों को भ्रमजाल में बनाए रखने का एक मजबूत सांस्कृतिक हथियार है। सवर्ण बुद्धिजीवी भले ही इसे बहुत महिमामंडित करते हैं लेकिन बहुजनों को लिए यह एक जहरीली किताब है। सुप्रसिद्ध दलित साहित्यकार मूलचंद सोनकर ने इसे स्त्रियॉं की गुलामी और अपमान के मद्देनजर देखा है।

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