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बेपरवाह स्वास्थ्य विभाग, बिना इलाज के जीने पर मजबूर हैं ग्रामीण किशोरियां
संकुचित सोच के कारण आज भी समाज में माहवारी को अभिशाप माना जाता है। हालांकि यह अभिशाप नहीं बल्कि वरदान है। आज भी समाज...
माहवारी पर आखिर इतना भेदभाव क्यों?
लोगों के मन से रूढ़िवादी सोच निकलने का नाम नहीं ले रही है। ऐसा लगता है कि रूढ़िवादी और प्रथाओं के आगे समाज ने अपने घुटने टेक दिए हैं। समाज को अपने ही बच्चों का कष्ट दिखाई नहीं दे रहा है। इस पीड़ा और अज्ञानता से बाहर निकलने के लिए खुद महिलाओं और किशोरियों को आवाज उठानी होगी।
मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता है जरूरी
हमारे समाज और गांव घरों में खासतौर से अभी भी यह रूढ़िवादी धारणाएं बनी हुई हैं कि मासिक धर्म के दौरान महिलाओं और किशोरियों को अलग रखना चाहिए। धीरे-धीरे लोगों की सोच में परिवर्तन हो रहा है। हमारे गांव में अब किशोरियों को अलग रखना बंद कर दिया गया है। थोड़ी बहुत अब भी यह कुप्रथा जारी है। धीरे-धीरे यह भी बदल जाएगा। सरकार द्वारा चलाई गई योजना सही साबित हो रही है क्योंकि आशा वर्कर मासिक धर्म और उसकी साफ-सफाई के बारे में लोगों को जागरूक करती हैं।
माहवारी पर गांवों में आज भी है संकुचित सोच
लमचूला, बागेश्वर, उत्तराखंड। हम भले ही आधुनिक समाज की बात करते हैं, नई-नई तकनीकों के आविष्कार की बातें करते हैं, लेकिन एक कड़वी सच्चाई यह...
मूर्तियों से किसका भला होगा
मूर्तियां लोगों को मूर्ख बनाकर उनके अधिकारों को छीनने का तरीका है जबकि सरकार में उनकी जनसंख्या के हिसाब से उनका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने...