लोगों के मन से रूढ़िवादी सोच निकलने का नाम नहीं ले रही है। ऐसा लगता है कि रूढ़िवादी और प्रथाओं के आगे समाज ने अपने घुटने टेक दिए हैं। समाज को अपने ही बच्चों का कष्ट दिखाई नहीं दे रहा है। इस पीड़ा और अज्ञानता से बाहर निकलने के लिए खुद महिलाओं और किशोरियों को आवाज उठानी होगी।
हमारे समाज और गांव घरों में खासतौर से अभी भी यह रूढ़िवादी धारणाएं बनी हुई हैं कि मासिक धर्म के दौरान महिलाओं और किशोरियों को अलग रखना चाहिए। धीरे-धीरे लोगों की सोच में परिवर्तन हो रहा है। हमारे गांव में अब किशोरियों को अलग रखना बंद कर दिया गया है। थोड़ी बहुत अब भी यह कुप्रथा जारी है। धीरे-धीरे यह भी बदल जाएगा। सरकार द्वारा चलाई गई योजना सही साबित हो रही है क्योंकि आशा वर्कर मासिक धर्म और उसकी साफ-सफाई के बारे में लोगों को जागरूक करती हैं।