लोगों के मन से रूढ़िवादी सोच निकलने का नाम नहीं ले रही है। ऐसा लगता है कि रूढ़िवादी और प्रथाओं के आगे समाज ने अपने घुटने टेक दिए हैं। समाज को अपने ही बच्चों का कष्ट दिखाई नहीं दे रहा है। इस पीड़ा और अज्ञानता से बाहर निकलने के लिए खुद महिलाओं और किशोरियों को आवाज उठानी होगी।