विकास के नाम पर देश के हर हिस्से में गरीब, आदिवासी, दलित, पिछड़े समाज को किसी ना किसी रूप में विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है। इस विस्थापन में अक्सर विस्थापित होने वाले परिवार के वाजिब हक की भरपाई करने में भी सरकारी तंत्र आनाकानी करता दिखता है। यह विस्थापन शहर की गलियों से होता हुआ अब जंगलों तक जा पहुंचा है। मध्य प्रदेश के नौरादेही अभयारण्य में भी अब विस्थापन की तलवार चलाई जा रही है। विस्थापन की इस त्रासदी पर सतीश भारतीय की रिपोर्ट -
देश का हदय कहे जाने वाले सागर जिले को हरिसिंह गौर की नगरी भी कहते हैं। जिला व्यापक होने से कई वार्डों में बंटा है। यहाँ अंबेडकर वार्ड में करीब 400 परिवारों (दलित) सालों से बसे हैं। लेकिन इनकी जमीन पटवारी रिकॉर्ड में नहीं दर्ज है। जबकि, अपने-अपने जमीन की रजिस्ट्रियां लोगों के पास हैं। ऐसे में निवासी जमीन पर अपना अधिकार जताने में असमर्थ हैं।
मध्य प्रदेश में अपराधियों को कानून का कोई खौफ नहीं रहा गया है। दलितों, आदिवासियों के खिलाफ सामने आ रहे ज्यादातर मामलों में सत्ता समर्थक द्वारा ही उत्पीड़न की घटनाएँ सामने आ रही हैं। यह घटना देश के शहरी विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह के निर्वाचन क्षेत्र खुरई में हुई है।