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बन के तमाशा मेले में आया..

अपने पे हंसके जग को हंसाया, बन के तमाशा मेले में आया..

ये सभी समुदाय पूर्णतः भूमिहीन हैं और किसी भी गाँव में उनके रहने के लिए लोगों के दिल अभी तक बड़े नहीं हुए। छुआछूत और जातीय भेदभाव है लेकिन नाम मुस्लिम है इसलिए अनुसूचित जाति या पिछड़े वर्ग का होना का लाभ नहीं मिलता। न ग्रामीण भारत में विकास के नाम पर वो किसी के एजेंडे में और न ही हिन्दू-मुस्लिम या अन्य किसी जाति के लिए महत्वपूर्ण। अब समय आ गया है कि पसमांदा आन्दोलन के लोग और स्वाभिमान के लिए संघर्षरत अम्बेडकरवादी आन्दोलन के साथी इन जातियों तक पहुंचें और बाबा साहेब अम्बेडकर का सन्देश उन तक पहुंचाएँ ताकि वे सभी अपने समाज में बदलाव ला सकें और रुढ़िवादी परम्पराओं से बाहर निकलकर सम्मानपूर्वक जिंदगी जी सकें।

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