Monday, October 13, 2025
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

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जुबीन गर्ग : लोक का दुलारा और अपना कलाकार जिसे भूल पाना असंभव है

जुबीन गर्ग को गए हुए 23 दिन बीत गए हैं। आज भी आसाम के किसी भी हिस्से में चले जाइए, हर तरफ़ बस जुबीन ही मौजूद हैं। उनकी याद में तमाम कार्यक्रम हो रहे हैं और उनको श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही है। सोनापुर में उनकी समाधि पर कामाख्या मंदिर के बाद सबसे ज़्यादा लोग इकट्ठा हो रहे हैं और मुझे लगता है कि कुछ महीनों में ही यह एक तीर्थस्थल जैसा बन जाएगा। सचमुच यह प्यार, यह भावना अकल्पनीय है और नेपाल, भूटान तथा बांग्लादेश में भी लोग दर्द में डूबे हुए हैं। हम लोगों ने उनकी याद में पासीघाट, अरुणाचल प्रदेश, में भी पेड़ लगाए और वहाँ के लोगों ने इसमें बढ़कर भाग लिया। स्थानीय लोग तो मानते ही नहीं हैं कि ऐसा हुआ है, कहीं कहीं पोस्टर पर उनकी जन्मतिथि तो लिखी है लेकिन उसके बाद अंतिम तिथि की जगह हमेशा के लिए लिखा है। पढ़िये गुवाहटी से विनय कुमार का आँखों देखा हाल ..

आरएसएस ने भारत की आजादी में हिस्सा लेते हुए कौन सी कुर्बानियाँ दीं

आरएसएस के सौ वर्ष पूरे होने पर मोदी ने अपने भाषण में कहा कि देश की आजादी के लिए बड़ी-बड़ी कुर्बानियां दीं और चिमूर जैसे कई स्थानों पर ब्रिटिश शासन का विरोध भी किया। उनके अनुसार राष्ट्र निर्माण में संघ का जबरदस्त योगदान है। लेकिन संघ का राष्ट्रवाद ‘अलग‘ था यह तब स्पष्ट हुआ जब पंडित नेहरू ने 26 जनवरी, 1930 को तिरंगा फहराने का आव्हान किया। हेडगेवार ने भी झंडा फहराने का आव्हान किया, किंतु भगवा झंडा फहराने का। हेडगेवार नमक सत्याग्रह में शामिल हुए थे क्योंकि उन्हें लगा कि यह जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानियों को अपने संगठन की ओर आकर्षित करने का एक अच्छा अवसर है। इसलिए उन्होंने सरसंघचालक के पद से इस्तीफा दिया, जेल गए और जेल से रिहा होने के बाद दुबारा वही पद ग्रहण किया। इस दौरान उन्होंने अन्य लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के प्रति हतोत्साहित किया। एक संगठन के रूप में आरएसएस ने किसी भी ब्रिटिश विरोधी आंदोलन में भाग नहीं लिया।

वाराणसी : सभी निजी शैक्षणिक संस्थानों द्वारा मातृत्व लाभ देना जरूरी, राष्ट्रीय महिला आयोग ने दिया आदेश

राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने वाराणसी स्थित सनबीम वीमेंस कॉलेज वरुणा को शिकायतकर्ता संगीता प्रजापति को सात दिनों के अंदर मातृत्व लाभ मुहैया कराने का आदेश दिया। उन्होंने कहा- मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के अनुसार मातृत्व लाभ प्रत्येक शैक्षणिक संस्थान पर लागू होता है, क्योंकि यह प्रत्येक महिला का मूलाधिकार है। मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत यह एक बड़ी जीत हासिल हुई है।

आई लव मोहम्मद : साम्प्रदायिक हिंसा का नया बहाना

इन दिनों हम ‘आई लव मोहम्मद‘ के सीधे-सादे नारे को लेकर हिंसा भड़काने के नजारे देख रहे हैं। इसकी शुरुआत कानपुर से हुई जब मिलादुन्नबी के दिन पैगम्बर मोहम्मद के जन्म दिवस के अवसर पर निकाले गए जुलूस में शामिल ‘आई लव मोहम्मद‘ बैनर पर कुछ लोगों द्वारा इस आधार पर आपत्ति की गई कि इस धार्मिक उत्सव में यह नई परंपरा जोड़ी जा रही है।

बनारस : गांधी जयंती के अवसर पर ‘एक कदम गांधी के साथ’ पदयात्रा आरंभ

सर्व सेवा संघ की 'एक कदम गांधी के साथ' पदयात्रा गांधी जयंती के दिन वाराणसी राजघाट से शुरू की गई है, जो अनवरत 56 दिनों तक विभिन्न जिलों-प्रदेशों से होती हुई संविधान दिवस के दिन दिल्ली राजघाट में सम्पन्न होगी। यह यात्रा  1000 किमी की दूरी तय करेगी। इस यात्रा का उद्देश्य देश में चल रहे नफरत और सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ अहिंसात्मक तरीके से विरोध दर्ज करना है।

राजस्थान : मिट्टी से भविष्य की फसल उगाते युवा

पिछले कई दशकों में युवा गांव में खेती-किसानी की जगह शहरी नौकरियों, मेट्रो-ज़िंदगी और शहरों की चमक-दमक की तरफ खिंचे चले आए हैं। लेकिन अब एक बार फिर से बदलाव नजर आने लगा है। कुछ युवा वापस गाँव और खेती की तरफ लौट रहे हैं या कम-से-कम खेती को एक सम्मानजनक, तकनीकी और लाभदायक करियर विकल्प के रूप में देखते हुए लाखों की आमदनी कर रहे हैं।

किशन पटनायक के चिंतन में अच्छी राजनीति का विकल्प बचा हुआ था

किशन पटनायक विकास के विनाशकारी मॉडलों का विरोध करने वाले आंदोलनों में सक्रिय रहे, कभी अपने स्वास्थ्य की परवाह नहीं की। एक सच्चे दार्शनिक की तरह निरंतर लिखते और सोचते रहे। वे एक लोकतांत्रिक समाजवादी थे, इसमें कोई शक नहीं, लेकिन उन्होंने अपने लेखों या भाषणों में कभी किसी नेता का हवाला देते नहीं देखा। सच्चे अर्थों में एक स्वतंत्र विचारक थे। ‘विकल्पीन नहीं है दुनिया’ से लेकर ‘भारत शूद्रों का होगा’ तक, समाजवाद, किसानों के मुद्दे, सांप्रदायिकता, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और लैंगिक संबंधों को कवर करने वाली उनकी रचनाएँ, विचारों की मौलिकता को दर्शाती हैं। पढ़िये, उनके साथ बिताए लेखक के अनुभव और संस्मरण।

पर्यावरण के लिए समर्पित राजस्थान का नाथवाना गांव

नाथवाना गांव के लोग केवल पेड़ लगाते ही नहीं, बल्कि उनकी रक्षा भी करते हैं। अक्सर देखने को मिलता है कि गांव के बच्चे स्कूल जाते समय रास्ते में लगे पौधों को पानी देते हैं। खेतों से लौटती महिलाएं पौधों को अपने मटके से दो-चार लोटा पानी जरूर डालती हैं। यहां तक कि शादी-ब्याह और धार्मिक आयोजनों में भी पौधे लगाने की परंपरा बन चुकी है। यह मानवीय पहलू इस गांव की सबसे बड़ी ताकत है, जिसने वृक्षों और इंसानों के बीच एक आत्मीय रिश्ता बना दिया

भारतीय संविधान और सामाजिक न्याय : एक सिंहावलोकन

भारतीय समाज में अनेक असमानताएं व्याप्त हैं। कुछ ऐसी ताकतें हैं जो भारतीय संविधान का ही अंत कर देना चाहती हैं। वह इसलिए क्योंकि संविधान समानता की स्थापना के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण औज़ार है। इस समय जो लोग सामाजिक न्याय की अवधारणा के खिलाफ हैं वे खुलकर भारत के संविधान में बदलाव की मांग कर रहे हैं। लेकिन जरूरी है कि संविधान के सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने वाले उसके प्रावधानों सहित, रक्षा की जाये और उसे मज़बूत बनाये जाये।

बौद्धिक गुलामी को रेखांकित करने वाले विचारक थे किशन पटनायक

किशन पटनायक का निधन 27 सितम्बर, 2004 को हुआ था। आज उनकी बीसवीं स्मृति-तिथि है। इस आलेख में बौद्धिक गुलामी की स्वीकार्यता, नौजवान की मानसिकता, राजनीति और बुद्धिजीवियों की भूमिका पर किशन पटनायक के हवाले से विचार किया गया है।

उत्तर प्रदेश : जाति की राजनीति के बहाने विपक्ष को कमजोर करने की रणनीति

उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि पुलिस रिकॉर्ड, एफआईआर और गिरफ्तारियों में जातिगत उल्लेख नहीं होगा। सार्वजनिक स्थानों से जातिसूचक स्टिकर हटाए जाएँगे और जाति-आधारित रैलियों पर रोक लगाई जाएगी। सतही तौर पर यह कदम जातिगत भेदभाव खत्म करने की दिशा में क्रांतिकारी प्रतीत होता है, लेकिन जब इसे राजनीतिक संदर्भ में देखा जाता है, तो इसके पीछे कई गहरे प्रश्न खड़े हो जाते हैं।

राजस्थान : वंचित समुदाय सरकारी योजनाओं की कमी के चलते शिक्षा पाने में नाकामयाब

राजस्थान में सरकारी स्कूलों की स्थिति का हाल कुछ ऐसा है कि स्कूलों में मास्टर की कमी सबसे बड़ी समस्या है। उदाहरण के लिए, राज्य में लगभग 1.17 लाख शिक्षण पदों पर अभी भी टीचरों की नियुक्ति नहीं हुई है। स्कूलों को उच्च माध्यमिक स्तर पर अपग्रेड किया गया है, लेकिन नए पदों पर टीचर की नियुक्ति नहीं होने के कारण कक्षाएँ नियमित रूप से नहीं चल पा रही हैं। UDISE ( Unified District Information System for Education) रिपोर्ट बताती है कि 7,688 स्कूलों में सिर्फ एक ही शिक्षक होते हैं, और 2,167 सरकारी स्कूल ऐसे हैं जहाँ एक भी छात्र नामांकित नहीं है।

वाराणसी : हिन्दू कट्टरपंथी ताक़तों के दबाव में आईआईटी बीएचयू में गौहर रज़ा का कार्यक्रम रद्द 

वाराणसी स्थित आईआईटी-बीएचयू में प्रसिद्ध वैज्ञानिक, कवि और विचारक गौहर रज़ा के व्याख्यान का 23 सितंबर कोऑनलाइन कार्यक्रम हिन्दू कट्टरपंथी संगठनों के दबाव में रद्द कर दिया गया। देश में असहमति की आवाज और प्रगतिशील विचारों को कुचलने की बढ़ती प्रवृत्ति और लगातार कोशिशें फासीवादी मानसिकता का परिचायक है।

नवयान दर्शन की प्रासंगिकता की पड़ताल करती एक किताब

एकदम सरल, व्यवहारिक, रोचक, किंतु तर्कशील और सकारात्मक अंदाज़ में लिखी रत्नेश कातुलकर की पुस्तक नवयान दर्शन : बुद्ध की शिक्षाओं का आधुनिक विवेचन, बौद्ध धर्म से जुड़ रहे नए पाठकों को धम्म की जानकारी मिलेगी।

जस्टिस गवई को ‘भीमटा’ की गाली सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक सरोकारों के सिमटते जाने का संकेत है

भारत की सड़ी हुई राजनीति और मनुवादी मानसिकता का असली चेहरा तब सामने आता है जब दलित समाज से आया व्यक्ति सत्ता, न्याय या प्रतिष्ठा की ऊँचाई पर पहुँच देश का मुख्य न्यायाधीश बनता हैऔर मनुवादी उसे सहज स्वीकार नहीं करते। इधर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई को सोशल मीडिया पर 'भीमटा' कहकर अपमानित किया गया। यह केवल एक गाली नहीं है। यह उस आंबेडकरवादी विचारधारा पर हमला है जिसने मनुवाद की नींव हिलाई थी। यह संविधान और लोकतंत्र को नीचा दिखाने की कोशिश है।

बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री ही नहीं सामाजिक न्याय के सूत्रधार भी थे भोला पासवान शास्त्री

आमतौर पर भोला पासवान शास्त्री का जिक्र आते ही एक व्यक्तिगत ईमानदार और आदर्शवादी राजनेता का चेहरा उभरता है जिसने तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बावजूद अपने लिए कुछ नहीं किया। अत्यंत संयम और किफायत के साथ अपना पूरा जीवन गुजार दिया। लेकिन केवल इतना ही काफी नहीं है बल्कि भोला पासवान शास्त्री ने सामाजिक न्याय की दिशा में बेमिसाल काम किया है जिसकी ओर प्रायः ध्यान नहीं दिया गया है। अपने कार्यकाल में मुंगेरी लाल आयोग का गठन करके उन्होंने भविष्य में मण्डल आयोग की जरूरत का सूत्रपात कर दिया था। हरवाहे-चरवाहे के रूप में जीवन शुरू करनेवाले भोला पासवान शास्त्री के रोचक और प्रेरक जीवन पर एच एल दुसाध का लेख।

देश का सांप्रदायिककरण करने में आरएसएस के बाद ढोंगी बाबाओं की कतार सबसे आगे 

बाबा पंडा-पुरोहितों के परंपरागत वर्ग से ताल्लुक नहीं रखते। वे लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की स्वयं की नई-नई तरकीबें ईजाद करते हैं। कुछ परंपरागत ज्ञान और कुछ अपनी कल्पनाओं को मिश्रित कर वे ऐसे विचार प्रस्तुत करते हैं जो उनकी पहचान का केन्द्रीय बिंदु होता है। अपने हुनर पर उनका भरोसा वाकई काबिले तारीफ होता है और वे प्रायः बहुत अच्छे वक्ता होते हैं। 

युवा रंगकर्मी मोहन सागर : हुनर और धैर्य के साथ बनती कहानी

मोहन सागर जिस पृष्ठभूमि से आते हैं, उन जैसे लोगों को कला के क्षेत्र में जगह बनाने के लिए प्रोत्साहन मिलना कठिन होता है, बल्कि यह कह सकते हैं कि पर्याप्त इग्नोरेंस मिलता है। मोहन सागर ने इन हालात में अपने को टिकाए रखा। रायगढ़, खैरागढ़ और फिर दिल्ली तक का सफर करते हुए वह मुंबई के फिल्मी माहौल में जा पहुँचे हैं। यहाँ अपने हुनर के कारण जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन इस संघर्ष ने रंग दिखाना शुरू कर दिया है।  थिएटर में लगातार काम करते हुए कुछ फिल्मों व वेब सीरिज में भी काम कर रहे हैं। पढ़िये उनकी कला यात्रा का संघर्ष।

राजस्थान : माहवारी के लिए सुविधा की सरकारी योजनाओं से वंचित हैं लड़कियां

माहवारी से जुड़ी चुनौतियाँ केवल व्यक्तिगत समस्या नहीं हैं बल्कि यह सीधे शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक समानता से जुड़ा मुद्दा है। जब लड़कियाँ पैड की कमी के कारण पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर होती हैं, तो यह केवल उनका नुकसान नहीं बल्कि पूरे समाज का नुकसान है। सरकार और समाज यदि मिलकर सुनिश्चित करें कि हर गाँव में पैड और स्वच्छता सुविधाएँ समय पर उपलब्ध हों, तो लाखों लड़कियों का जीवन आसान हो सकता है

भारतीय राजनीति में नफ़रत के बोल और गालीबाजों का बढ़ता बोलबाला

आरएसएस की शाखाओं में महान हिंदू राजाओं और दुष्ट मुस्लिम राजाओं की कहानियों के अलावा, स्कूलों और उसके द्वारा संचालित मीडिया के ज़रिए फैलाई जाने वाली नफ़रत, 1977 के बाद और भी बढ़ गई, जब सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में लालकृष्ण आडवाणी ने यह सुनिश्चित किया कि समाचार एजेंसियों में सांप्रदायिक मानसिकता वाले लोग घुसपैठ करें। मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही, मोदी के करीबी कॉर्पोरेट जगत ने प्रमुख समाचार पोर्टलों को खरीदना शुरू कर दिया और भारतीय मीडिया को गोदी मीडिया में बदल दिया। सोशल मीडिया और भाजपा आईटी सेल ने इसमें और इज़ाफ़ा किया।

आरएसएस के 100 साल : और खतरनाक हुए इरादे

आरएसएस के विचारक यह दावा करते हैं कि हिन्दू धर्म सहिष्णु और समावेशी है, लेकिन हकीकत इससे बहुत अलग है। भागवत दंभपूर्ण लहजे में कहते हैं, ‘हिन्दू वह है जो दूसरों की आस्थाओं को नीचा दिखाए बिना अपने मार्ग पर चलने में विश्वास रखता है और दूसरों की आस्था का अपमान नहीं करता, जो इस परंपरा और संस्कृति का पालन करते हैं, वे हिन्दू हैं।' संघ संचालक प्रमुख कोई भी दावा करें लेकिन लेकिन वातविकता क्या है,यह सबके सामने है।

आजमगढ़ : बिजली की मांग को लेकर प्रदर्शन करने वाले वजीरमलपुर क़े ग्रामीणों पर पुलिसिया दमन

बिजली की मांग को लेकर लोग प्रदर्शन कर रहे थे तो रात में पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया और गाँव में घुसकर दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। घटना की सूचना पर सोशलिस्ट किसान सभा और सामाजिक न्याय मंच के प्रतिनिधि मंडल ने गाँव पहुंचकर पीड़ितों से मुलाक़ात की। 

वाराणसी : डीएनटी समुदाय ने ‘विमुक्त जाति दिवस’ मनाया

डीएनटी समुदाय हर वर्ष 31 अगस्त को, विमुक्त जाति दिवस का आयोजन करता है। इस अवसर पर 1871 के क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट के अन्याय और 1952 में मिली मुक्ति के ऐतिहासिक महत्व को याद कर विमुक्त समाज को समाज को मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास लगातार जारी रखा हुआ है।

सीएम पीएम को हटाने वाला कानून, संविधान व संघीय ढांचे के लिए कितना खतरनाक

केंद्र सरकार ने 130वां संविधान संशोधन विधेयक पेश कर दिया है, जिसके तहत किसी भी मंत्री-मुख्यमंत्री को किसी आपराधिक मामले में गिरफ्तार कर 30 दिनों तक हिरासत में रहने पर पद से हटा दिया जाएगा।

गिरफ्तार मंत्रियों को हटाने का विधेयक भ्रष्टाचार पर नहीं, विपक्ष पर हमला है

'जनहित, कल्याण और सुशासन' के नाम पर पेश किया गया 130वां संविधान संशोधन विधेयक, 2025 वास्तव में विपक्ष के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों को अस्थिर करने और भारत के संघीय ढांचे को कमजोर करने के लिए बनाया जा रहा एक कठोर कानून है। जहां अनुच्छेद 14, 19 और 21 कानून के समक्ष समानता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, उचित प्रक्रिया और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सुनिश्चित करते हैं। वहीं यह विधेयक अप्रमाणित आपराधिक आरोपों पर स्वतः निष्कासन की गारंटियों का उल्लंघन करता है। 

विभाजन की विभीषिका के बहाने क्या साधने में लगी है भाजपा

एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों से मुगलों को पहले ही हटा दिया है; आरएसएस ने हिंदुत्व राष्ट्रवाद के अपने दावे को मज़बूत करने के लिए आर्यों को इस भूमि पर प्रथम आगमनकर्ता के रूप में महिमामंडित करने के लिए प्राचीन इतिहास भी प्रस्तुत किया है, क्योंकि आर्य जाति हिंदू राष्ट्रवाद के स्तंभों में से एक है। इस श्रृंखला में नवीनतम भारत के विभाजन का गलत चित्रण है। उन्होंने 'विभाजन विभीषिका दिवस और विभाजन' पर दो मॉड्यूल जारी किए हैं।

घरेलू हिंसा की पीड़िता की मदद करने वाली पुणे की दलित महिलाओं को धंधेवाली कहकर थाने में किया गया प्रताड़ित

पुणे में घरेलू हिंसा की शिकार एक युवती ने अपने बचाव के लिए एक सामाजिक संस्था से संपर्क किया जिसकी कार्यकर्ता ने अपनी एक वकील मित्र से उस युवती को कोथरूड में रहनेवाली कुछ कामकाजी महिलाओं के साथ साथ रहने का बंदोबस्त कर दिया। एक पुलिसकर्मी के परिवार की बहू उस युवती के ससुर ने पता लगाकर उन महिलाओं को न केवल जातिसूचक गालियाँ दी बल्कि उनके साथ मारपीट की और अपनी पहुँच की बल पर उन्हें थाने ले गया, जहाँ उन्हें अश्लील गालियाँ देते हुए देह व्यापार करनेवाली कहा गया। गौरतलब है कि पीड़ित महिलाएं दलित समुदाय से आती हैं। थाणे में उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई बल्कि उन्हें प्रताड़ित किया गया। इस मामले ने दलित महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। भंडारा की जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता और सामाजिक अध्येता मिनल शेंडे की टिप्पणी।

मोहन भागवत जो भी कहें लेकिन आरएसएस में कुछ नहीं बदलेगा

भागवत द्वारा विज्ञान भवन में 2018 में दिए गए व्याख्यानों को कितनी महत्ता दी गई थी। उन्हें सुनकर कई नादान राजनैतिक समीक्षकों को यह लगने लगा था कि आरएसएस बदल रहा है। आरएसएस के अंदरूनी मामलों की जानकारी रखने वाले और उससे जुड़े एक सज्जन की टिप्पणी थी  कि आरएसएस ग्लासनोस्त  की प्रक्रिया से गुजर रहा है।  मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। उसके बाद का घटनाक्रम आरएसएस के एजेंडे के मुताबिक विघटनकारी कृत्यों से ही भरा रहा। 

नेहरू के भूत से ही नहीं राहुल गाँधी के वजूद से भी डरते रहे हैं मोदी

नरेंद्र मोदी को प्रधानमत्री बने 11 साल हो गए हैं, इन ग्यारह वर्षों में वह प्रायः अप्रतिरोध्य रहे। हाल के वर्षों में राहुल गांधी को छोड़ दिया जाय तो पक्ष या विपक्ष का कोई भी नेता उन्हें चुनौती देने की स्थिति में नहीं रहा। बावजूद इसके वे बुरी तरह किसी से परेशान रहे तो वह नेहरू-गांधी परिवार है। इस कारण वे विगत ग्यारह वर्षों में समय-समय इस परिवार को लेकर तीखी आलोचना करते हुए अपनी परेशानी जाहिर करते रहे हैं। ताज़ी घटना संसद के मानसून सत्र की है, जिसमें ऑपरेशन सिंदूर पर अपनी बात रखने के क्रम में उन्होंने 14 बार पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का जिक्र किया। उन्होंने अपने 102 मिनटों के भाषण में नेहरू की इतनी गलतियाँ गिनाई कि श्रोता ऊंघने लगे। संसद के बाहर एक जनसभा में उन्होंने कहा कि नेहरू-गांधी परिवार सबसे भ्रष्ट परिवार है। बहरहाल एक बार फिर नेहरू को निशाने पर लेने के बाद राजनीतिक विश्लेषक उन कारणों की खोज में व्यस्त हो गए है , जिन कारणों से वह नेहरु-गांधी परिवार को निशाने पर लेने का कोई अवसर नहीं चूकते।

‘अडानी भगाओ छत्तीसगढ़ बचाओ’ के नारे के साथ संयुक्त किसान मोर्चा ने मनाया कॉर्पोरेट विरोधी दिवस

किसान मोर्चा के नेताओं नेअपने विरोध प्रदर्शन में कहा कि छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार को अपनी कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों के विरोध में आम जनता और किसान समुदाय का तीखा विरोध झेलना पड़ेगा। संयुक्त किसान मोर्चा ने भाजपा की मजदूर-किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ पूरे प्रदेश में किसानों और आदिवासियों को लामबंद करने की योजना बनाते हुए आज कॉर्पोरेट विरोधी दिवस मनाया गया।

छत्तीसगढ़ को नफरत की नर्सरी बना रही है भाजपा

अंग्रेजों के समय से आज तक इस देश में ईसाई शैक्षणिक संस्थाएं सेवा और उत्कृष्टता के केंद्र हैं। ईसाई समुदाय, विशेष रूप से ननों और पादरियों ने स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सेवा क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया है। यही कारण है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा सहित संघी गिरोह के कई बड़े नेता, जो आज हिंदुत्व के पुजारी बने हुए हैं, इन्हीं शिक्षा संस्थाओं से पढ़कर निकले हैं और उनका हिंदुत्व की कोई नसबंदी नहीं हुई है। इसलिए ईसाई संस्थाओं पर धर्मांतरण का थोक के भाव में आरोप लगाने का एक ही उद्देश्य है कि उनकी धार्मिक स्वतंत्रता को प्रतिबंधित किया जाए और समाज में सांप्रदायिक विभाजन किया जाए।

वाराणसी : अल्पसंख्यकों पर बढ़ते दमन व फिलिस्तीन के प्रति एकजुटता के लिए साझा संस्कृति मंच का शांति मार्च

अल्पसंख्यकों पर दमन की घटनाएँ चिंताजनक स्तर पर बढ़ रही है। हाल के महीनों में, भारत के कई हिस्सों में अल्पसंख्यक समुदायों विशेषकर मुस्लिम और ईसाई समुदाय के खिलाफ बढ़ते दमन और धार्मिक हिंसा की घटनाएं सामने आई हैं। शांति के उद्देश्य के लिए साझा संस्कृति मंच ने शांति मार्च आयोजित किया।

भाजपा शासन के ग्यारह वर्ष : संविधान और धर्मनिरपेक्षता का लगातार दमन

पिछले 11 वर्षों से केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारों पर नियंत्रण रखते हुए, ये ताकतें संविधान के तीन स्तंभों..धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और संघवाद  को कमज़ोर करने और उसकी जगह समाज के एक अंधकारमय, मध्ययुगीन दृष्टिकोण पर आधारित एक फ़ासीवादी हिंदू राष्ट्र स्थापित करने के लिए जी-जान से जुटी हैं।

आजमगढ़ : राष्ट्रीय ओबीसी दिवस पर सम्पन्न हुई गोष्ठी

राष्ट्रीय ओबीसी दिवस/मण्डल दिवस पर सामाजिक न्याय आंदोलन ने मण्डल अधूरा क्यों, जातिगत जनगणना, मतदाता और नागरिकता तथा आरक्षण का सवाल विषय पर गोसाई बाजार आज़मगढ़ में गोष्ठी सम्पन्न हुई। 

मालेगांव विस्फोट मामला : सत्रह साल बाद पीड़ितों के जख्म पर नमक की तरह आया फैसला

मालेगांव विस्फोट का मामला महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधी दस्ते के पास था। वर्ष 2011 में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने इस मामले को अपने हाथ में लिया। अदालत ने पाया कि अभियुक्तों के शामिल होने का प्रबल संदेह है, लेकिन अभियोजन पक्ष इसे संदेह से परे साबित नहीं कर पाया, इसलिए सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया गया। सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया, जो पीड़ितों के लिए एक बड़ा झटका और हिंदुत्व खेमे के लिए जश्न का विषय था।

क्या मुसलमानों के बाद अब ईसाइयों की बारी है?

आए दिन ईसाई धर्म के लोगों के साथ-साथ उनके चर्च, नन और पादरियों पर धर्मांतरण के आरोप लगाकर हिंसक हमला कर उत्पीड़ित किया जा रहा है। भारत में ईसाइयों के उत्पीड़न का मुख्य स्रोत संघ परिवार है, जो हिंदू चरमपंथियों का एक संगठन है, जिसमें आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) नामक प्रभावशाली अर्धसैनिक और रणनीतिक समूह, भाजपा, प्रमुख राजनीतिक दल और बजरंग दल, एक हिंसक युवा शाखा शामिल है।

छत्तीसगढ़ धर्मांतरण मामला : झूठे साबित हुए हिंदुत्व के ठेकेदार, ननों को मिली जमानत

फिलहाल सिस्टर प्रीति मैरी, वंदना फ्रांसिस और आदिवासी युवक सुखमई को जमानत मिल गई है। इस प्रकरण में पूरे देश में हुए हंगामे के बाद एनआईए अदालत से आरोपियों को जमानत मिलने का एक ही अर्थ है कि सरकार के प्रथम दृष्टया सबूतों को अदालत ने खारिज कर दिया है।

वाराणसी : यूपी में हजारों स्कूल बंद करने के आदेश के ख़िलाफ़ प्रदर्शन

देश में शिक्षा का अधिकार के अंतर्गत 6 वर्ष से 14 वर्ष  तक के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य  शिक्षा का अधिनियम वर्ष 2010 से लागू हुआ। ताकि हर गाँव, मोहल्ले, शहर और कस्बे के बच्चों को अनिवार्य व मुफ्त शिक्षा मिले। लेकिन इस अधिनियम को दरकिनार करते हुए योगी सरकार ने 5000 सरकारी स्कूलों को बंद करने का निर्णय लिया है। आश्चर्यजनक रूप से 2014 से 2024 तक मोदी सरकार ने 90,000 सरकारी स्कूलों को भारत भर में बंद कर दिया। सरकार के इस  निर्णय ने समाज  के वंचित तबके को शिक्षा और असमानता के दलदल में धँसने को मजबूर कर दिया है,  जहाँ से सालों के संघर्ष के बाद यह समुदाय बाहर निकला था।

आजमगढ़ : विद्यालय की जमीन रिलायंस को देने के खिलाफ ग्रामवासी और किसान उतरे सड़क पर

आजमगढ़ के पूर्वांचल किसान यूनियन, सोशलिस्ट किसान सभा, एनएपीएम और सैकड़ों किसानों ने मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी कार्यालय पहुंचकर दिया।

कांवड़ के बहाने युवा उन्मादी भीड़ को हिंसक और बर्बर बना नफरत फैलाना है

जब खुद मुख्यमंत्री आदित्यनाथ कांवड़ियों के सत्कार में लगे हों, पुलिस के आला अफसरों की ड्यूटी उन पर फूल बरसाने की हो, थानों में पदस्थ अधिकारी और पुलिस के जवान महिला, पुरुष दोनों – कांवड़ियों के पाँव दबाने और पंजे सहलाने के काम में लगाये गए हों, ऐसा करते हुए उनके फोटो वीडियो सार्वजनिक किये जा रहे हों और इस तरह कोतवाल खुद मालिशिए हुए पड़े हों, तो फिर कांवरियों को किसका डर। डर तो दुकानदारों, होटल वालों और पैदल व गाड़ी पर चलने वाले लोगों को हो रहा है।
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