Thursday, November 21, 2024
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राजस्थान : स्लम बस्तियों में हमेशा होता है बुनियादी सुविधाओं का अभाव

ज़िन्दगी जीने के लिए बहुत नहीं तो कुछ बुनियादी सुविधाओं की जरूरत हर किसी को होती है, जिनमें रहने वाली जगहों के आसपास साफ़ पानी, सड़क, विद्यालय और स्वास्थ्य केंद्र होना जरूरी होता है लेकिन हर शहर की समस्या है कि झुग्गी-झोपड़ी में रह रहे लोगों को बाकी का क्या कहें साफ़ पानी तक उपलब्ध नहीं हो पाता। ऐसे में वहां रहने वालों का जीवन किसी नरक से कम नहीं होता। जबकि सरकार द्वारा झुग्गी पुनर्वास परियोजना चलाई जा रही है, ऐसे में उन तक सुविधा क्यों नहीं पहुँच पाती, प्रश्न यह उठता है।

हमारी आँखों पर पड़े परदे को हटाने के लिये धन्यवाद माननीय

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की सेवानिवृति के पूर्व की गई स्वीकोरोक्तियाँ तथा उनके कार्यकाल का आकलन लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिये चेतावनी है कि किस तरह उच्चतम स्तर पर न्यायिक घोषणाओं में संवैधानिक प्रावधानों, विधि और न्याय की स्थापित परंपराओं से हटकर बहुसंख्यकवादी भावनाएं प्रतिबिम्बित हो रही हैं। लोकतंत्र के वर्त्तमान भारतीय स्वरूप में विश्वास करने वालों को मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रचूड़ जी को इस बात के लिए धन्यवाद देना चाहिए कि उन्होंने न केवल न्याय की देवी की आँखों पर बंधी पट्टी हटाई है, हमारी आँखों पर पड़ा परदा भी हटाया है और कुल मिलाकर जाते जाते यह स्पष्ट कर दिया है कि मोदी सरकार ने उच्च न्यायपालिका में घुसपैठ करने में आरएसएस की कितनी मदद की है।

बिहार : ‘हर घर शौचालय’ योजना में मिलने वाले बारह हजार से क्या कोई सामान्य सा शौचालय भी बन सकता है

पूरे देश स्वच्छता अभियान के तहत हर घर शौचालय बनवाने के लिए सरकार की तरफ से बारह हजार दिए गए हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या बारह हजार में किसी शौचालय का निर्माण हो सकता है?सभी को पता है यह असंभव है, दीवार खड़ी हो जाती है लेकिन जाने लायक शौचालय नहीं बन पाता है। याने सरकारी कागजातों में गाँव के गाँव ओडीएफ घोषित हो रहे हैं लेकिन जमीनी सच्चाई इसके बिलकुल उलट है। बिहार में भी ओडीएफ की स्थिति जटिल बनी हुई है। आखिर सरकार किसी भी काम के लिए उचित पैसा क्यों नहीं देती है, जिससे लाभार्थी उसका फायदा उठा सकें।

राजस्थान : लड़कियों को खेल में आगे आने के अवसर लड़कों की तुलना में कम मिल पाते हैं

आज लड़कियां भी खेल में अपना करियर बना रही हैं लेकिन इसका अनुपात लड़कों की तुलना में फिर भी कम है। ग्रामीण क्षेत्रों में लडकियों में खेल का जूनून और जज्बा दोनों है लेकिन माहौल के साथ सुविधा के अभाव के चलते बहुत सी लड़कियां खेल में आगे नहीं आ पाती हैं। सरकार को चाहिए कि लड़कियों को आगे लाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में खेल के लिए विशेष ध्यान देते हुए उन्हें आगे लाने की योजना लानी चाहिए।

संजॉय घोष ग्रासरूट्स लीडरशिप अवार्ड्स 2024 के विजेताओं की घोषणा

पत्रकारिता के क्षेत्र में देश के नामी-गिरमी लोगों के नाम पर पत्रकारों को पुरस्कार दिए जाते हैं। लेकिन ग्रामीण पत्रकारिता में बहुत कम ही पुरस्कार हैं, जो ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले पत्रकारों को दिए जाएं। लेकिन सुजॉय घोष ग्रासरूट्स लीडरशिप अवार्ड्स हर वर्ष ग्रामीण क्षेत्रों में वंचित समुदाय के बीच जमीनी स्तर पर काम करने वाले पत्रकारों को प्रदान किया जाता है। वर्ष 2024 के लिए इस पुरस्कार की घोषणा की गई है।

गांवों में सरकार द्वारा दिए गए शौचालय स्वच्छ भारत मिशन की पोल खोलते हैं

स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय निर्माण के लिए एक ऐतिहासिक कदम है। इसके तहत शौचालय निर्माण के लिए सरकार की ओर से अनुदान भी दिया जाता है। सरकार की ओर से इसके लिए मात्र बारह हजार रुपए ही आर्थिक सहायता मिलती है। जो एक उपयोग करने वाले शौच के निर्माण के लिए अपर्याप्त है। गाँव में लोगों के घरों में शौचालय का निर्माण तो दिखता है लेकिन वह केवल खानापूर्ति है। ऐसा ही रहा तो देश में चल रहे स्वच्छ भारत मिशन अभियान से लक्ष्य प्राप्ति की उम्मीद करना बेकार होगा।

बिहार : शहर या गाँव में अब न तो पुस्तकालय बचे न ही रुचि लेकर पढ़ने वाले पाठक ही

भले ही आज किसी शहर या कस्बे में मॉल का होना शान का प्रतीक माना जाता है लेकिन एक समय पुस्तकालय का होना पढ़े-लिखे लोगों के होने की निशानी माना जाता था। जिन जगहों पर पुस्तकालय थे आज या तो वे बंद हो चुके हैं या फिर खस्ताहाल में हैं क्योंकि न तो पहले की तरह पढ़ने वाले बचे हैं न सरकार की तरफ से पुराने पुस्तकालयों को बचाने की कोशिश ही की जा रही है। गाँव में पुराने पुस्तकालय बंद हो चुके हैं। आज की पीढ़ी पुस्तकालय में जाने की बजाय फ़ोन के जरिए जानकारी हासिल करने में ज्यादा विश्वास कर रही है।

राजस्थान : शिक्षा के अभाव के कारण किशोरियां अपने अधिकारों को समझने से वंचित

शहर चाहे कितना भी सुंदर और व्यस्व्थित हो लेकिन कुछ क्षेत्रों में स्लम एरिया होते हैं, जहाँ के बच्चे शिक्षा,स्वास्थ्य और बुनियादी जरूरतों के अभाव में ज़िन्दगी गुजारने को मजबूर रहते हैं। इसका मुख्य कारण आर्थिक अभाव के साथ-साथ काम के सिलसिले में पलायन है। जिसकी वजह से बड़े होने के बाद, इनके क्या अधिकार हैं , समझने में असमर्थ होते हैं।

राजस्थान : झुग्गी में रहने वाले स्वास्थ्य सुविधा से वंचित क्यों?

एक गरीब इंसान का बीमार होना अभिशाप है क्योंकि स्वास्थ्य सुविधाएँ इतनी महंगी हो चुकी हैं कि उनके लिए बीमार होने पर इलाज करवाना दुश्वार हो गया है। हालाँकि सरकार ने स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक योजनायें लागू की है लेकिन गरीबों तक बुनियादी सुविधाएँ भी नहीं पहुँच पा रही हैं। जयपुर में राज्य सचिवालय से करीब 12 किमी दूर स्थित एक बस्ती में 40 से 50 झुग्गियां आबाद है, जिसमें लगभग 300 लोग रहते हैं।इस बस्ती में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों की बहुलता है। लेकिन उस बस्ती में इलाज और दवा के अभाव में गर्भवती महिलायें और बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।

राजीव हेमकेशव ने जेपी के संपूर्ण क्रांति के स्वप्न को जीवन के अंतिम समय तक नहीं छोड़ा – डॉ. राकेश रफीक

समाजवादी चिंतक राजीव हेमकेशव की याद में लखनऊ के नेहरू युवा केन्द्र में ‘राजीव की याद में हम रहेंगे साथ में’ कार्यक्रम आयोजित हुआ। जेपी आंदोलन में सक्रिय राजीव हेमकेशव का 5 अक्टूबर 2024 को लखनऊ में निधन हो गया था। आज उन्हें याद करते हुए श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किया गया।

बिहार : पितृसत्तात्मक समाज में खेल में हिस्सा लेने के लिए आज भी संघर्ष करना पड़ता है किशोरियों को

'पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे साहब, खेलोगे-कूदोगे बनोगे ख़राब' यह कहावत एक समय बहुत प्रचलित थी क्योंकि तब खेल में आज जैसा करियर नहीं था। आज इसका उलट है, जब लोग खेल में अपना करियर बना रहे हैं। लड़कियों के मामले में आज भी यह कम दिखाई देता है क्योंकि समाज की सोच पितृसत्तात्मक है। लेकिन जिन लड़कियों को खेलने की अनुमति मिलती है, उन्हें खेल सुविधाओं के अभाव का सामना करना पड़ता है। सरकार भले ही लड़कियों को आगे लाने के लिए योजनायें ला रही है लेकिन अभी तक पर्याप्त सफलता नहीं मिल पाई है।