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ग्राउंड रिपोर्ट

देवरिया : फासीवादी सरकार द्वारा लेखिका अरुंधति रॉय और प्रो. शेख शौकत पर यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने पर विरोध दर्ज

समाज के बुद्धिजीवी वर्ग से सरकार लगातार भयभीत होती दिखाई देती है। इस वजह से पिछले दस वर्षों से भाजपा ने लगातार लोगों के बोलने पर रोक लगाई। जिन लोगों ने उनके खिलाफ बोला या लिखा उन्हें या तो जेल में डाल दिया या उन पर सख्त कार्रवाई की गई।

देवरिया। संयुक्त किसान मोर्चा, सामान शिक्षा अधिकार मंच,चीनी मिल बचाओ संघर्ष समिति, किसान मजदूर संघर्ष मोर्चा, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, आम आदमी पार्टी, कांग्रेस , राष्ट्रीय समता दल, पूर्वांचल युवा मोर्चा आदि संगठनों व पार्टियों से जुड़े हुए विभिन्न नेताओं ने विख्यात लेखिका अरुंधति राय और पूर्व प्राध्यापक शेख शौकत पर यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की खिलाफ बैठक हुई।

बैठक के बाद जिलाधिकारी के माध्यम से राष्ट्रपति महोदया को ज्ञापन भेजा गया। ज्ञापन में मांग की गई है कि लगभग चौदह साल पहले दिए गए भाषण के लिए यूएपीए और आईपीसी प्रावधानों के तहत अरुंधति रॉय और शेख शौकत हुसैन के खिलाफ तत्काल प्रभाव से अभियोजन वापस लिया जाए। यूएपीए तथा सभी दमनकारी कानूनों को खत्म किया जाए। राजनीतिक बंदियों को रिहा किया जाए।

वक्ताओं ने कहा कि  विख्यात लेखिका अरुंधति राय और शिक्षाविद,  कानूनविद और पूर्व प्रधानाध्यापक शेख शौकत के खिलाफ यूएपीए लगाना अलोकतांत्रिक और अनावश्यक है। लोगों को अपने विचार व्यक्त करने से नहीं रोका जा सकता। हमारा देश सभी को अपनी बात कहने का मौका देता है। हालांकि, अभियोजन पक्ष अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंट लोकतांत्रिक मूल्यों के क्षरण को ही दर्शाएगा।

असहमति को दबाने और भाषण को आपराधिक बनाने के लिए आतंकवाद विरोधी कानूनों का इस्तेमाल बेहद चिंताजनक है।  अनुच्छेद 19 के तहत प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार प्राप्त है। अरुंधति रॉय के कथित भाषण के 14 साल बाद कार्रवाई की अनुमति दी गई है। बीच के वर्षों में भाषण को लगभग भुला दिया गया और इसने जम्मू-कश्मीर में माहौल को खराब नहीं किया।

अरूंधति रॉय पर थोपा गया अभियोजन किसी काम का नहीं है, सिवाय शायद यह दिखाने के लिए है कि भाजपा/केंद्र सरकार का सख्त रुख हाल ही में चुनावी झटके के बावजूद नहीं बदलेगा।

भारत के बेहतरीन लेखिका और बुद्धिजीवी अरुंधति रॉय पर यूएपीए के तहत मुकदमा चलाया जाएगा, क्योंकि वह एक साहसी आवाज़ है जो फासीवादी सरकार के सामने घुटने टेकने से इंकार करती है। चिंताजनक बात  यह है कि इसमें कश्मीर के कानून के पूर्व प्रोफेसर डॉ. शेख शौकत भी शामिल हैं। पिछले दस वर्षों में भारत में कानून व संविधान विरोधी अराजक शासन चल रहा है? क्या इस देश को खुली हवा में जेल में बदल देना चाहिए?

पिछले 10 वर्षों में केंद्र सरकार के पिछले घटनाक्रम से पता चलता है कि इन कदमों का असली इरादा असहमति की किसी भी आवाज को दबाना है।  इस प्रकार राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने भीमा-कोरेगांव मामले में झूठे आरोपों के साथ 16 प्रमुख बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं को जेल भेज दिया। जबकि कई मानवाधिकार संस्थाओं ने बताया कि स्वतंत्र विशेषज्ञों ने जांच की है, जिसमें पता चला है कि लोकतंत्र के इन रक्षकों पर मुकदमा चलाने के लिए कंप्यूटर डेटा से छेड़छाड़ करने के लिए स्पाइवेयर पेगासस का इस्तेमाल किया गया था।

इसी तरह, नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के लागू होने का विरोध करने वाले छात्रों और युवाओं को यूएपीए के तहत जेल भेज दिया गया था, और उनमें से कुछ बिना किसी मुकदमे या जमानत के जेलों में सड़ रहे हैं।

पिता, पुत्र और हिंदुत्व के एजेंडे की ओर ठेलमठेल

पिछले साल न्यूजक्लिक के संस्थापक-संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और अमित चक्रवर्ती को गिरफ्तार किया गया था। बिना किसी घटना के दस वर्ष से देवरिया के बीसियों गांव को नक्सली गांव घोषित कर खबरें छपती रही हैं। देवरिया जिले में भी फासीवादी दमनकारी कानूनों में फंसाकर जेल में ढकेलकर चुप कराने का उदाहरण सामने है – सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता बृजेश कुशवाहा व उनकी जीवन संगिनी अनीता प्रभा, इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील कृपाशंकर और उनकी जीवन संगिनी बिंदा सोना जैसे लोग जो सरकार के खिलाफ बोलने का साहस रखते हैं। असहमति की किसी आवाज को दबाना बेहद निंदनीय कृत्य है।

वक्ताओं में का.प्रेमलता पाण्डेय, सुमन, शिवाजी राय, ब्रजेंद्रमणि त्रिपाठी, डॉ.चतुरानन ओझा, डा.व्यास मुनि तिवारी,  इंद्रदेव अम्बेडकर, रामनिवास पासवान, संजय दीप कुशवाहा, हरिनारायण चौहान, एड.अरविंद गिरि, एड.विजय प्रकाश श्रीवास्तव, एड.लोकनाथ पाण्डेय, मिथिलेश प्रसाद आदि शामिल रहे।

 कार्यक्रम की अध्यक्षता शिवाजी राय और संचालन राजेश आज़ाद ने किया।

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