अंबेडकर नगर जिले के बेलहरी गाँव की रहनेवाली नीलम धूरिया आज आत्मविश्वास से भरी हुई बातें करती हैं और उनके पास भविष्य के कई सपने हैं जिन्हें साकार करने के लिए वह दिन-रात मेहनत करती हैं। नीलम आज अपने जिले की जानी-मानी यूट्यूबर हैं।
नीलम के दो यूट्यूब चैनल हैं। एक चैनल पर 35 हज़ार से अधिक सब्सक्राइबर और 70 लाख व्यूज हैं। वह बताती हैं कि ‘यूट्यूब के जरिये से मैंने जो कुछ कमाया है उसने मेरे आत्मविश्वास को बढ़ाया है और मैं अपने जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए लगातार मेहनत कर रही हूँ।’
नीलम ने अपने ही गाँव की मंजू वर्मा के चैनल को देखा तब उनके मन में भी अपना चैनल बनाने का खयाल आया। वह कहती हैं कि ‘मंजू वर्मा को देखकर मेरे मन में यह बात आई कि मैं भी अपना चैनल बना कर दो पैसे कमाऊँ और अपने पैर पर खड़ी होऊं। मेरे पति अब बैटरी रिक्शा चलाते हैं लेकिन पहले वह कुछ नहीं करते थे। मैं एक बिंदी के लिए भी तरस कर रह जाती थी। मुझे दिनरात यही टेंशन रहता था कि अभी तो मैं अकेले हूँ लेकिन कल जब बच्चे होंगे तो खर्च कैसे चलेगा।’
‘ऐसे में मैं हमेशा यही सोचती कि क्या ऐसा करूँ कि मैं आगे बढ़ जाऊँ और दो पैसा कमाने लगूँ और अपने पैर पर खड़ी हो सकूँ। मैंने पैसे कमाने की बहुत कोशिश की लेकिन कहीं सफलता नहीं मिली। जब मैं ससुराल में आई तो मैंने एक स्कूल में पढ़ाया। बाद में ज्यादा स्टाफ के कारण प्राइमरी स्तर की अध्यापिकाओं को हटा दिया गया। उसी में मेरा भी काम छूटा। मैं 1200 रुपया महीने पर नौकरी कर रही थी लेकिन वह भी छूट गई। पूरे दिन बहुत परिश्रम करना पड़ता था। मैंने टेट का पेपर दिया लेकिन पास नहीं हो पाई।
बचपन से ही गाने का शौक रखने वाली नीलम की आँखें अपने जीवन के बारे में बात करते हुये डबडबा जाती हैं। वह उत्तर प्रदेश की अत्यंत पिछड़ी गोंड़ जाति से ताल्लुक रखती हैं। उनके माता-पिता भड़भूजे का काम करते थे और छह बेटियों तथा एक बेटे के परिवार का बड़ी मुश्किल से गुजारा हो पाता था। बाकी बहनें गरीबी के कारण पढ़ नहीं पाईं लेकिन नीलम को स्कूल भेजा गया और उन्होंने बी ए किया।
बचपन में ही नीलम को जातिदंश का सामना करना पड़ा। गाँव के सम्पन्न और दबंग लोगों ने उनके परिवार को अपने घरों में बेगार करने के लिए मजबूर किया। विरोध करने पर अपमान और प्रताड़ना झेलनी पड़ी। जातीय भेदभाव के कारण उनके माता-पिता को अपना गाँव छोड़ने के लिए भी मजबूर किया जाता रहा।

अपने गाने के बारे में नीलम बताती हैं कि ‘यू ट्यूब पर मैं गाना तो पहले से चाहती थी लेकिन कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। उस समय मेरे पास मोबाइल भी नहीं था। मैंने अपनी ननद के मोबाइल से सर्च किया। मंजू को वहीं देखी तब मुझे लगा कि यह तो अपने गाँव-देस का गाना गा रही हैं। मुझे लगा कि ऐसा गाना तो मैं भी गा सकती हूँ। एक संयोग से मैं यू ट्यूब पर आई। गाँव में किसी के घर के पारिवारिक आयोजन में मैं गई थी जहां मेरी मुलाक़ात मंजू वर्मा से हुई।’
‘मंजू से मुलाक़ात हुई तो उनके बेटे ने मेरा भी चैनल बना दिया और मैं गाने डालने लगी और मेरा मेरा चैनल बहुत तेजी से आगे बढ़ा। महज़ 21 दिनों में ही चैनल मोनेटाइज़ हो गया। मुझे तो विश्वास ही नहीं था कि इतनी तेजी से यह सब हो जाएगा लेकिन यू ट्यूब ने मेरी उम्मीदों को पंख लगा दिया।’ नीलम बताती हैं कि ‘अपने दर्शकों का इतना प्यार-दुलार-आशीर्वाद पाकर मैं अभिभूत हो गई और बहुत मेहनत से गाने गाकर चैनल पर डालने लगी।’
वह कहती हैं कि ‘इसने मुझे इतना उत्साह दिया कि रातों की नींद गायब हो गई। पहले तो ऐसा होता था कि मैं छटपटा उठती थी कि व्यूज कितना भागा? मिनट-मिनट पर घबराहट जैसी होती। रात में उठ-उठ कर बार-बार देखती रहती। अगर ऐसे में बैटरी खत्म हो गई और बिजली भी गायब हो गई या नेट बंद हो गया तो लगता जैसे जान ही निकल जाएगी। आपको यह सुनकर हंसी आएगी कि उस समय का एक्साइटमेंट ऐसा था कि खाना खाने बैठती थी तो खाना भी न खाया जाता।’
मंजू-नीलम तथा अन्य जोड़ियाँ
आज नीलम और मंजू की जोड़ी एकदम प्रसिद्ध हो गई है। वे अलग-अलग गानों में अलग-अलग किरदार निभाती हैं। कभी-देवर भौजाई, कभी-ननद भौजाई और कभी देवरानी-जेठानी। मंजू शर्ट पहनकर पगड़ी बाँधकर पुरुष का रोल करती हैं और दोनों हर दिन के हिसाब से अलग-अलग गाने रिकॉर्ड करती हैं।

मूलतः खेतिहर परिवार से आनेवाली अपने मंजू वर्मा अपने घर में एक छोटी सी दुकान भी चलाती हैं और इस तरह घर चलाने में अपना योगदान करती हैं। उनकी कहानी नीलम धूरिया की कहानी से बहुत अलग नहीं है। दोनों के लिए यू ट्यूब आर्थिक आत्मनिर्भरता का माध्यम है जहां वे अपने हुनर का उपयोग करके न सिर्फ चर्चित हो रही हैं बल्कि पैसा भी कमा रही हैं।

पाँचवीं कक्षा के बाद पढ़ न पाने का आज भी बहुत अफसोस करने वाली मंजू वर्मा ने बताया कि ‘पति घर का सारा खर्चा उठाते हैं, उनकी तरफ से कोई शिकायत नहीं है।’ मंजू का कहना है कि ‘यदि मैं खुद हर महीने पाँच सौ रुपये भी कमा पाती हूँ तब यह मेरे स्वाभिमान को बचाने के लिए बहुत है। घर पर खेती-बाड़ी है और पति की मोबाइल की दुकान है। पिछले दो वर्ष पहले जब से परिवार की अलगौझी हुई उसके बाद घर चलाना थोड़ा मुश्किल था। दो बच्चों की पढ़ाई में किसी भी तरह की रुकावट न हो और नौकरी करने का कोई विकल्प न होने के कारण मैंने यूट्यूब के माध्यम से बचपन से गाते आ रहे पारंपरिक लोकगीतों को गाना शुरू किया। धीरे-धीरे नीलम धूरिया मेरे साथ जुड़ी और अब हम दोनों पैसे कमा रही हैं।’

ऐसी कई जोड़ियाँ हैं। मसलन उषाकिरण (उषा जौनपुरिया और किरण सिंह) सुनीता और राधिका यादव, अंतिमा प्रजापति और अनुपम मौर्य तथा मंजू मोहिनी, खुशबू रानी और रीना यादव आदि अपने गीत प्रायः एक साथ गाती हैं। सभी का अपना-अपना चैनल है।
पारिवारिक बन्दिशों और सामाजिक तानों के बीच पहचान बनाने की बेचैनी
नीलम धूरिया बताती हैं कि ‘मंजू वर्मा से मुलाक़ात होने के बाद जब साथ गाने और चैनल बनाने की बात पक्की हुई तब मैंने अपने ससुर जी से पूछा कि बाबूजी मैं यू ट्यूब पर गाना गाना चाहती हूँ। आप इजाज़त दें तो मैं गा सकती हूँ। अगर आप मना करेंगे तो नहीं गाऊँगी। तब ससुर जी ने कहा कि गलत काम नहीं होना चाहिए। अगर तुम्हारी इच्छा है तो गाओ। तब मैंने मंजू वर्मा को फोन किया कि अब घर से छूट मिल गई है। अब मैं गाऊँगी।’
गांवों में रहनेवाली इन सभी यू ट्यूबरों को पारिवारिक बन्दिशों के बीच काम करना पड़ता है। अंबेडकर नगर की सबसे सफल माने जानेवाली यूट्यूबर प्रांजल पाण्डेय यूं तो बहुत बोलती हैं लेकिन अपने दरवाजे पर लगे हैंडपंप के पानी के बारे में पूछे जाने पर अनभिज्ञता जताते हुये कहती हैं कि ‘मैं तो घर से बाहर ही नहीं निकलती हूँ क्योंकि मुझे इजाज़त नहीं है। घर के अंदर का सारा काम करती हूँ। खाना बनाना, बर्तन माँजना, बच्चों और सास-ससुर की देखभाल सब करती हूँ और इसके बाद गाने तैयार करती हूँ।’

मुझे तब घोर आश्चर्य हुआ जब बिहार के कैमूर जिले से अपनी छोटी बहन के घर जौनपुर आई सीमा मौर्य ने बातचीत के समय नाक तक घूँघट खींच लिया। हालांकि जब वह मुझसे मिलीं तब उल्टे पल्ले की साड़ी में थीं और घूँघट नहीं किया था। आखिर रिकॉर्डिंग के समय एक फुट लंबा घूँघट क्यों?
इस सवाल पर सीमा ने बताया कि ‘मैं विधवा हूँ और मेरे दो बच्चे हैं लेकिन पारिवारिक मर्यादा और सम्मान के लिए मैं अपना मुँह ढक रही हूँ क्योंकि मेरे ससुर और जेठ यह नहीं चाहेंगे कि उनके परिवार की एक औरत मुँह खोलकर गाने गाती और हँसी-ठट्ठा करती फिरे।’ कई बार कहने के बावजूद सीमा का आग्रह था कि उनकी रिकॉर्डिंग इसी तरह हो। लोग उनका गाना सुनेंगे। सीमा के यूट्यूब ने अभी तक गति नहीं पकड़ी है लेकिन उन्हें भरोसा है कि जल्दी ही वे वायरल होंगी।

आजमगढ़ जिले के उत्तर पश्चिमी छोर के एक गाँव की रहनेवाली अंतिमा प्रजापति ने बताया कि ‘जब घर पर अपना यूट्यूब चैनल बनाने के लिए अनुमति ली, तब मेरे पति ने कहा कि लोग क्या कहेंगे? उनका कहना था कि इस पर गीत गाना सही नहीं होगा, लेकिन इसके बाद जैसे-तैसे मैंने उन्हें सहमत करने के बाद अपना चैनल बनाया।’
उनके चैनल पर बाइस हजार सब्सक्राइबर और मोनेटाइज हो जाने के बाद बाद भी आस-पड़ोस द्वारा अनर्गल बातें कहने-सुनने के कारण वह उदास हो गईं और अपना चैनल बंद कर दिया। लेकिन दुबारा उनके देवर ने हौसला बढ़ाया और एक नया चैनल बनाया। आज उसके 70 हजार सब्सक्राइबर हैं। लोगों के ताने से बचने के लिए शुरू के दो महीने उन्होंने छुप-छुपकर बाथरूम के अंदर रिकॉर्डिंग की। अच्छा परिणाम आने के बाद अंतिमा लोगों की परवाह करना बंद कर अब आराम से अपना काम कर रही हैं।

हर किसी की कहानी में परिवार और समाज की बन्दिशें और अड़ंगेबाजी हैं लेकिन सबने इनसे निपटने के लिए तरीका निकाला। जौनपुर जिले सुजानगंज इलाके के एक गाँव में रहनेवाली हंसमुख, जीवंत और हाजिरजवाब रीना यादव ठेठ किसान परिवार की बहू हैं और संयुक्त परिवार में रहती हैं।
रीना कहती हैं कि जब मैंने काम शुरू किया तब अड़ोस-पड़ोस के लोगों ने कहा कि जल्दी ही यह अपने परिवार की नाक कटवाएगी। रीना ने खिलखिलाते हुये कहा –‘परिवार ने तो कोई बंदिश नहीं लगाई लेकिन इन लोगों ने ही अपनी नाक बहुत लंबी कर ली और इंतज़ार करते रहे कि अब कटेगी लेकिन मैंने ऐसा कोई काम नहीं किया कि उनकी नाक पर खरोंच भी आए।’
जब आगे बढ़ी बात तो परिवार भी आया समर्थन में
कहते हैं सफलता की अम्मा पहाड़ लांघ जाती है। ऐसा ही इन महिलाओं के साथ हुआ। बेहद सामान्य आर्थिक हालात से आनेवाली इन महिला यूट्यूबरों ने जब अपनी ज़िद और जुनून के कारण अपनी स्वतंत्र पहचान बना ही ली तो परिवार के लोग भी उनके समर्थन में आ गए। जौनपुर की वंदना दुबे, मंजू मोहिनी, उषा चौहान, किरण सिंह, इंदु सिंह और रीना यादव हों, अंबेडकर नगर की प्रांजल पाण्डेय या पुष्पा देवी, मंजू वर्मा-नीलम धूरिया हों या फिर आजमगढ़ की सुनीता-राधिका यादव, रंजू यादव या गीता यादव हों, इन सबको परिवार का सहयोग मिला है।
महज़ दो महीने पहले यूट्यूब गाना शुरू करनेवाली आजमगढ़ की अनुपम मौर्य तो इस मामले में बहुत खुशनसीब हैं कि उनकी सास संगीता मौर्य न सिर्फ उनकी सपोर्टर हैं बल्कि उनके पास पारंपरिक गीतों का एक समृद्ध खजाना है। अनुपम को अपनी सास से हमेशा ट्रेनिंग भी मिलती है क्योंकि संगीता स्वयं बहुत अच्छा गाती हैं।
अनुपम ने बताया कि उनकी सासु माँ उन्हें पारंपरिक गानों की धुन और लय बताती हैं, जिसे वह याद करने के बाद गाती हैं। वह अपना काम अंतिमा प्रजापति की राय मशविरा पर करती हैं। संगीता मौर्य ने बताया कि जब घर बैठे मेहनत से गाकर कुछ पाया जा सकता है, तब क्या बुराई है?

गीता यादव बताती हैं कि मैंने काफी समय अपने पति को सहमत करने में लगाया कि मैं यूट्यूब चैनल पर गाना चाहती हूँ लेकिन पहले उन्होंने सिरे से नकार दिया। कई महीनों के बाद जाकर वह राजी हुये कि ठीक है गाओ। अभी गीता का चैनल वायरल नहीं हुआ है लेकिन अब वे गाने की रिकॉर्डिंग अथवा दूसरे कामों के लिए उन्हें लेकर भी जाते हैं।
रीना के पति कार चालक हैं और बाहर कार्यक्रम होने पर वह उन्हें लेकर जाते हैं। अपेक्षाकृत व्यस्त मंजू मोहिनी बताती हैं कि मुझे परिवार का सपोर्ट न मिलता तो मैं इतना आगे न जा पाती। मेरे भांजे बृजेश का परिवार मेरे बाहर कार्यक्रम के लिए जाने पर मेरे बच्चों की देखभाल करता है। मेरे पति हर कदम पर मेरे साथ हैं।
यूट्यूब से होनेवाली कमाई ने परिवार में इन महिलाओं का सम्मान बढ़ाया है। वंदना दुबे और मंजू मोहिनी जैसी गायिकाओं ने इसी से अपने लिए घर और कार जैसी चीजें खरीदी। नीलम और मंजू ने आर्थिक आत्मनिर्भरता पाई है। रीना ने बहुत उत्साह से बताया कि यूट्यूब की अपनी पहली कमाई से मैंने अपनी कार का इंश्योरेंस का पैसा दिया और नंबर प्लेट लिया।
वायरल होने के लिए कड़ी मशक़्क़त से तैयार किया जाता है गाना
उत्तर प्रदेश के गाँवों में रहनेवाली इन महिला यूट्यूबरों की लगन और उत्साह को देखकर लगता है कि वे अपने काम में फिसड्डी नहीं रहना चाहती हैं। वे किसी तरह से वायरल होने के लिए जी-जान से मेहनत कर रही हैं। उनकी सामान्य बातचीत में भी लाख और मिलियन व्यूज, वायरल कंटैंट, सब्सक्राइबर और मोनेटाइज जैसे शब्द बार-बार आते हैं। किसी का कद इस बात से बड़ा नहीं माना जा रहा है कि वह कितनी बड़ी गायिका है बल्कि इस बात से आँका जा रहा है कि उसके पास कितने सब्सक्राइबर और व्यूज़ हैं।
सब्सक्राइबर और व्यूज़ बढ़ाने के लिए जीतोड़ मशक्कत करती हैं। मंजू वर्मा और नीलम धूरिया कहती हैं कि हम लोग हर हफ्ते छह चैनलों के लिए तीन दिन गाने रिकॉर्ड करते हैं। यह दोपहर से शुरू होता है और शाम ढले तक चलता रहता है। यहाँ तक कि थककर चूर हो जाते हैं और गला भी बैठ जाता है। हम थर्मस में गरम पानी रखते हैं और थोड़ी-थोड़ी देर में पीते रहते हैं। इससे गले की सिंकाई होती रहती है और हमारा काम रुकता नहीं।

रंजू यादव न केवल बहुत अच्छा गाती हैं बल्कि स्वयं अच्छी श्रोता भी हैं। वह लता मंगेशकर और शारदा सिन्हा की फैन हैं। बचपन से ही गाने की शौकीन रंजू ने स्कूल कॉलेज में लगातार गाया लेकिन ससुराल में उनका गाना छूट गया। लोगों को गाते देखकर उन्होंने एक साल पहले यूट्यूब पर अपना चैनल बनाया जिस पर उनके बहुत से गाने अपलोड हैं। स्नातक तक शिक्षा प्राप्त करनेवाली रंजू अपना कॉस्मेटिक स्टोर चलाती और सिलाई करती हैं।
रीना यादव कहती हैं कि मैं रोज चौबीस रील बनाती हूँ। सुबह बच्चों को तैयार करने, बर्तन माँजने और घर का खाना बनाने के साथ ही यह काम शुरू होता है जो रात में सोने तक चलता रहता है। प्रांजल पांडेय भी घर के कामों के साथ-साथ अपने कंटेन्ट बनाती रहती हैं।
लगभग सभी महिलाएं अपनी ससुराल में रहती हैं और सभी के ऊपर पारिवारिक दायित्व है जिससे मुंह मोड़ना और फुल टाइम यूट्यूबर होना असंभव है। सुनीता यादव ने घर में ही ब्यूटी पार्लर खोला है। इन सबके साथ उन्हें घर के सारे काम निपटाने पड़ते हैं इसके बावजूद वह नियमित रूप से अपने गीत रिकॉर्ड करती हैं। वह अपनी जेठानी राधिका के साथ गाती हैं।

लेकिन केवल गीत रिकॉर्ड करने और यूट्यूब पर अपलोड कर देने से वायरल नहीं हो जाता बल्कि नई-नई सामग्री का चयन करना भी महत्वपूर्ण हैं। इसके लिए वे हर दिन यूट्यूब पर खोजती रहती हैं कि कौन सा नया विषय अभी वायरल है। कुछ गायिकाओं के कवि हैं लेकिन कुछेक खुद ही अपने गाने लिखती हैं। हाल-फिलहाल मेरठ का मुस्कान कांड और अलीगढ़ का सास-दामाद कांड बहुत वायरल हुआ और अधिकांश महिलाओं ने इस पर गाने गाए।
इसके अलावा तकनीकी ज्ञान की भी जरूरत पड़ती है। इस काम के लिए उनके घर के सदस्य मददगार होते हैं। लेकिन जिनके घर में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होता वे दूसरे यूट्यूबरों से सहयोग लेती हैं। जौनपुर के यूट्यूबर कवि संतोष इस मामले में अनेक गायिकाओं के मददगार हैं। महिला यूट्यूबरों की बढ़ती संख्या को देखते हुये कुछ लोगों ने तो बाकायदा ऐसी एजेंसी खोल ली है और फीस लेकर चैनल बनाने और कंटेन्ट वायरल करने की सेवाएँ दे रहे हैं।
जहां असली गीतों का ख़जाना है वहाँ व्हाट्सएप्प चलाना भी अभी सीखना है
सुंदर-चपल, सजी-धजी और बातूनी महिला यू ट्यूबरों की भीड़ में अंबेडकर नगर की वैजन्ती मिश्रा अपनी सहज विनम्रता के कारण प्रायः अलक्षित रह जाती हैं। उनके यू ट्यूब चैनल पर 3500 से अधिक सब्सक्राइबर हैं और वह चाहती हैं कि यह संख्या बढ़े और उनको भी कुछ कमाई हो। हालांकि इसको लेकर वह कोई बड़ा दावा नहीं करतीं।
वैजन्ती मिश्रा को शायद ही इस बात का गुमान हो कि उनके पास जो कुछ है वह न केवल दुर्लभ है बल्कि सभी महिला यू ट्यूबरों से अलग भी है। उसमें महिलाओं की तकलीफ़ों और पितृसत्ता के दबाव की बेधक अभिव्यक्तियाँ हैं। उनके गीतों को सुनते हुये कोई भी संवेदनशील श्रोता विचलित हुये बिना नहीं रह सकता।
जब मैं अंबेडकर नगर के एक गाँव में यूट्यूबर पुष्पा के घर में उनसे मिली तो वह हमारी राह देखते-देखते अनमनी हो चली थीं। सूरज डूबने के कारण रिकॉर्डिंग बहुत मुश्किल थी। हमारा मुख्य टार्गेट पुष्पा थी और इसीलिए वैजन्ती मिश्रा को खास तवज्जो नहीं दी जा रही थी। हालांकि पुष्पा उनकी घनिष्ठ सहेली है और दोनों साथ में ही काम करती हैं।
लेकिन मुझे तब आश्चर्य हुआ जब वह गीत गाने लगीं। उन्होंने तीन मार्मिक जँतसार गीत सुनाये और एक तरह से उनके कथानकों ने हमें बाँध लिया। इसमें स्त्रियों की वेदना का अत्यंत हृदयविदारक चित्रण था। सास की क्रूरता और षड्यंत्र की कहानी जिस तरह से वैजन्ती के कंठ से फूट रहा था था वह अद्भुत था।
अपने छोटे से परिवार के साथ गाँव में रहनेवाली वैजन्ती के पास अवधी के पुराने गीतों का एक खज़ाना है। उन्हें दर्जनों गीत याद हैं। मुझे तब बहुत आश्चर्य हुआ जब मैंने उन्हें व्हाट्सएप्प पर एक लिंक भेजकर उन्हें फोन किया कि देख लें लेकिन उन्होंने कहा कि मुझे तो व्हाट्सएप्प देखना ही नहीं आता।
गरीबी से निकलने, वायरल होने और पहचान बनाने का साधन बना यूट्यूब
तीन दिनों तक तीन जिलों की के दौरान मैं बीस ऐसी महिलाओं से मिली जो यूट्यूबर हैं। मैं उन्हीं से मिल पाई जो मेरे परिचय में हैं लेकिन पता करने पर हर ऐसी बड़ी संख्या मिल सकती है। अभी मैं केवल ऐसी महिलाओं से मिली जो केवल गीत गाती है लेकिन दर्जनों ऐसी महिलाएं हैं अभिनय करती हैं। कुछ साल पहले केवल रोली जौनपुरिया का नाम जाना-पहचाना था लेकिन आज अनेक वायरल चेहरे हैं।
ज़्यादातर ठेठ देहात के किसान परिवारों की बहुएं हैं। अधिकतर निम्न मध्यवर्गीय परिवारों से निकली ये बहुए सिर पर पल्लू रखे, मांग में भर-भर सिंदूर लगाए सजी-धजी नफ़ासत से रहना सीख गई हैं।
एक समय था जब गाँव में शादी होकर आने के बाद महिलाएं दो हाथ लंबे घूँघट में रहते हुए घर की देहरी के अंदर ही पूरा जीवन बिता देती थीं लेकिन अब यह दृश्य बदल रहा है। हालांकि आज भी अनेक गांवों में यह परंपरा चल रही है लेकिन अंबेडकरनगर, जौनपुर और आजमगढ़ के गांवों में वायरल होने का जो जुनून दिखाई देता है वह आश्चर्यचकित कर देने वाला है। मैं जितनी महिलाओं से मिली उन सभी ने एक दूसरे की देखा-देखी ही अपना यूट्यूब चैनल खोला लेकिन अब वे पीछे मुड़कर देखने के लिए तैयार नहीं हैं।
गाँव की ये महिलाएं आत्मनिर्भर बनने की दिली चाहत रखती हैं। प्रायः सभी ने ठीक-ठाक पढ़ाई की है लेकिन घर से बाहर जाकर किसी ने नौकरी नहीं की। इसके बावजूद इतना स्वाभिमान उनमें जरूर दिखा कि हाथ में अपनी मेहनत की कमाई से दो पैसा मिले। यूट्यूब से जिन-जिन महिलाओं का पैसा आया, वे सब बहुत उत्साहित हैं और अपने चैनल को आगे बढ़ाने की मशक्कत में लगी हुई हैं। कई महिलाएं ससुराल में रहते हुए खेती-किसानी के साथ, गाय-भैंस को संभालने का काम भी परिवार वालों के साथ बराबरी से करती हैं।

बातचीत में उन लोगों ने बताया कि गाना उन्हें बचपन से ही आता था और शादी-ब्याह में वे लगातार गाती रही हैं। यही हुनर उनका हथियार बन गया और इसी के सहारे देखते-देखते उन्होंने अपनी एक पहचान बना ली।
आज जब यूट्यूब पर फूहड़ रील्स की प्रस्तुति जोरों पर है, तब ऐसे समय में इन महिलाओं ने शिष्ट, शालीन और रचनात्मक तरीके से अपने गीतों को प्रस्तुत कर रही हैं। पारंपरिक और कुछ कवियों के लिखे गीतों के अलावा वे अपने गीतों को लिखने का काम भी स्वयं कर रही हैं।
इन सब चीजों ने अनेकों की जिंदगी बदल दी। इसी से वे गरीबी के दुष्चक्र से बाहर आईं। एक यूट्यूबर से बातचीत करते हुये वंदना दुबे ने बताया कि वह अत्यंत निर्धन परिवार से आती हैं। उनकी शादी में उनके पिता की सामर्थ्य दहेज में साइकिल भी दे पाने की नहीं थी। लेकिन यू ट्यूब ने उन्हें फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया।
प्रांजल पांडेय भी एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार से आती हैं लेकिन आज वह यूट्यूब से से अच्छी-ख़ासी कमाई कर रही हैं। नीलम धूरिया की कहानी ऊपर कही जा चुकी है। प्रायः सभी महिलाएं आर्थिक सीमांत वाले परिवारों से आती हैं।

केवल इंदु सिंह ही ऐसी हैं जिनके पति चावल मिल के मालिक हैं और उनके लिए यूट्यूब की कमाई का कोई खास मतलब नहीं है। मधुर सुर में ठेठ ग्राम्य-गीत गाने वाली इंदु केवल वायरल होना चाहती हैं। इसके लिए वह जिस तरह से मेहनत कर रही हैं उससे लगता है कि जल्दी उनकी एक बड़ी पहचान बनेगी।
सोशल मीडिया पर बढ़त बना रही बहुजन महिलाएं
यूं तो सभी जातियों की महिलाएं यूट्यूब पर काम कर रही हैं लेकिन ऐसी बहुत बड़ी संख्या है जो बहुजन समाजों से आती है। उनके सुरों और गीतों में अपनी संवेदनाएं और पीड़ा झलकती है। वे दब्बू बिलकुल नहीं हैं और जनता से संवाद बनाने का तरीका सीख गई हैं। बड़ी संख्या में उनकी फैन फॉलोइंग यह ज़ाहिर करने के लिए काफी है कि उनकी आवाज सुनी जा रही है।
उन्होंने अपनी सीमाओं में रहकर काम करने का कौशल विकसित कर लिया है और वे निडर हैं। अपने ऊपर छींटाकशी करनेवालों को विनम्रता से जवाब देने की कला भी उन्हें आ गई है। मसलन रीना यादव के एक वीडियो पर किसी ने बहुत खराब कमेन्ट किया लेकिन रीना ने एक नया चैनल बनाकर एक वीडियो जारी करते हुये उस व्यक्ति को धन्यवाद दिया कि आपने मुझे इतने ध्यान से देखा। भगवान आपकी आँखों की रौशनी और तेज करे।
बेशक अभी ये महिलाएं लोकप्रियता को एक बड़ा पैमाना मानते हुये वायरल कंटेन्ट बनाने में लगी हैं और इसके लिए समाज में होने वाली घटनाओं को पितृसत्ता के चश्मे से ही देखती हैं लेकिन लोक में रची-बसी रचनाओं के माध्यम से वे सामाजिक स्तरीकरण और पुरुष वर्चस्व की आलोचना भी खूब कर रही हैं।
अश्लीलता और फूहड़पन से भरे गीतों के दौर में वे अपनी पारंपरिक लोक की ज़मीन को अपने तरीके से जोतकर उर्वर भी बना रही हैं। उन्हें देखने और समझने की जरूरत तो है ही प्रशंसा और सम्मान के साथ उनकी समीक्षा भी करने की जरूरत है। उन्होंने भाषा को अपने स्वरों से गुलजार कर दिया है। अगर उन्हें ठीक से प्रोत्साहन और प्रेरणा मिली तो वे सामाजिक बदलाव में भी एक बड़ी भूमिका निभा सकती हैं। जैसा कि शायर मजाज़ कहते हैं –
तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था!