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वाराणसी : डीएनटी समुदाय ने ‘विमुक्त जाति दिवस’ मनाया

डीएनटी समुदाय हर वर्ष 31 अगस्त को, विमुक्त जाति दिवस का आयोजन करता है। इस अवसर पर 1871 के क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट के अन्याय और 1952 में मिली मुक्ति के ऐतिहासिक महत्व को याद कर विमुक्त समाज को समाज को मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास लगातार जारी रखा हुआ है।

जंगलपुर मुशर् बस्ती में उड़ान ट्रस्ट और नट समुदाय संघर्ष समिति के संयुक्त तत्वावधान में  31 अगस्त 2025 को, विमुक्त दिवस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर 1871 के क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट के अन्याय और 1952 में मिली मुक्ति के ऐतिहासिक महत्व को याद किया गया।

1871 में अंग्रेजी सरकार द्वारा लागू किया गया यह कानून भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय था। इस कानून के तहत संपूर्ण जनजातियों को जन्म से ही ‘अपराधी’ घोषित कर दिया गया। नट, सांसी, बावरिया, कालबेलिया सहित सैकड़ों समुदायों पर यह अमानवीय कलंक लगाया गया। घुमंतू जीवनशैली को अपराध माना गया और पुलिस निगरानी में रखा गया

सामाजिक न्याय का हनन

बिना किसी अपराध के पूरे समुदाय को संदिग्ध माना गया। मौलिक अधिकारों का हनन और मानवीय गरिमा का अपमान करते हुए  शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार से वंचित रखा गया।

 भारत की स्वतंत्रता के पांच साल 16 दिन बाद, 31 अगस्त 1952 को यह अमानवीय कानून समाप्त किया गया। जिसके तहत लगभग 193 जनजातियों को इस कलंक से मुक्ति मिली। पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार द्वारा लिया गया यह निर्णय ऐतिहासिक था। विमुक्त जनजाति (Denotified Tribes) के रूप में नई पहचान मिली।

कानूनी रूप से अपराधी का ठप्पा हटाया गया। संविधान के तहत समान अधिकारों की प्राप्ति। सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया गया।

73 साल बाद भी संघर्ष

 कानूनी मुक्ति के बावजूद सामाजिक कलंक अभी भी बना हुआ है। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार में भेदभाव जारी। सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा। पुलिस उत्पीड़न की समस्या आज भी विद्यमान है।

विमुक्त घुमंतु खानाबदोश समुदाय (डीएनटी समुदाय) पहचान पत्र और दस्तावेजों की समस्या से लगातार जूझ रहे हैं। जिसकी वजह से मुख्यधारा की शिक्षा तक पहुंचने में नाकाम रहे हैं। आर्थिक असमानता और गरीबीके कारण सामाजिक स्वीकृति की कमी का सामना कर रहे हैं।

‘विमुक्त दिवस’ के अवसर पर आज के कार्यक्रम में विमुक्त दिवस के ऐतिहासिक महत्व पर चर्चा कर समुदायिक नेताओं द्वारा अनुभव साझा किया गया। वर्तमान समस्याओं पर खुली चर्चा कर भविष्य की कार्य योजना पर विचार-विमर्श हुआ। साथ ही शिक्षा के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन और कानूनी सहायता, अधिकारों की सुरक्षा, आर्थिक सशक्तिकरण, कार्यक्रम और सांस्कृतिक गौरव का संरक्षण पर विस्तार से बातचीत हुई।

कार्यक्रम के दौरान विमुक्त जनजातियों को समान सम्मान और अवसर, भेदभाव और पूर्वाग्रहों को त्यागने के साथ सामुदायिक विकास में सहयोग करने की अपील की गई। कार्यक्रम में सरकार से विमुक्त जनजातियों के लिए विशेष आरक्षण नीति, शिक्षा और रोजगार में प्राथमिकता, पुलिस सुधार और संवेदनशीलता प्रशिक्षण और न्याय आयोग की सिफारिशों का तत्काल क्रियान्वयन की मांग की गई।

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आज के इस ऐतिहासिक दिन पर, हम संकल्प लेते हैं कि विमुक्त जनजातियों के वास्तविक सशक्तिकरण के लिए निरंतर संघर्ष करते रहेंगे। कानूनी मुक्ति के 73 साल बाद भी जो सामाजिक न्याय नहीं मिला है, उसे पाने के लिए हम एकजुट होकर काम करेंगे। आज के कार्यक्रम के मुख्य सहभागी साथी राहुल राठौर, सौरभ, मीना के साथ मुसहर बस्ती के लगभग 80 महिला, पुरुष व बच्चे शामिल थे (प्रेस विज्ञप्ति)

प्रेम कुमार नट
प्रेम कुमार नट
नट संघर्ष समिति वाराणसी के संस्थापक और संयोजक हैं।

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