Thursday, November 21, 2024
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

डॉ लता प्रतिभा मधुकर

भूमिपुत्र की आत्महत्या और भूमिकन्या की जद्दोजहद

अपराध अनुसंधान विभाग और वित्त विभाग द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन के अनुसार किसान 20,000 रुपयों से लेकर 4,00,000 रुपये तक के कर्ज़ अदा नहीं कर पाए थे। इतनी कम रकम के लिए इस देश के किसानों ने आत्महत्या की है। महाराष्ट्र में प्रति दिन लगभग 08 किसान आत्महत्या करते हैं। अर्थात, लगभग रोज़ ही 08 किसान महिलाएँ विधवा होती हैं। अर्थात, महाराष्ट्र में प्रति वर्ष लगभग 2930 किसान महिलाएँ विधवा होती हैं। 'कर्ज़ से छुटकारा पाने के  लिए फाँसी लगाकर आत्महत्या करें या गुलामगीरी पर गुलेल चलाएँ?', घर के किसान पुरुष की आत्महत्या के बाद  एकल महिला के संघर्ष की आप बीती बयान करने वाला आलेख.

मेरा गाँव : इस लड़की को बाहर करो यह बहुत ज्यादा हँसती है!

डॉ. लता प्रतिभा मधुकर जानी-मानी लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। मुंबई में रहने वाली लता प्रतिभा मधुकर नर्मदा बचाओ आंदोलन के साथ ही पिछड़ा वर्ग के आन्दोलनों में शामिल रही हैं। साथ ही  उसमें इस वर्ग की भागीदारी के लिए  बहुत काम कर चुकी हैं। उनका बचपन नागपुर में बीता।

महाराष्ट्र : किसानों की पत्नियाँ कर्ज चुकाते जी रही हैं बदतर ज़िंदगी

आज समूचे देश में कृषि-क्षेत्र में 72 प्रतिशत से ज़्यादा लड़कियाँ और महिलाएँ दिन-रात पसीना बहा रही हैं। मगर उनका अस्तित्व आज भी उनके पति के अस्तित्व पर निर्भर करता है। फिर भी इन औरतों ने परिस्थितियों  से जूझना बंद नहीं किया है। महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या के बाद उनकी पत्नियाँ किस तरह उनका कर्ज उतारकर जीवन जी रही हैं, पढ़िये ग्राउंड रिपोर्ट

महाराष्ट्र : महाजनों के डर से आत्महत्या करते धरतीपुत्र और घर चलाती भूमि कन्याएँ

आत्महत्या करने वाले अधिकतर किसान ओबीसी जातियों के हैं। मगर उनकी आत्महत्या का मुद्दा जब कहीं भी उन जातिगत राजनीतिक संगठनों के एजेंडे में शामिल नहीं है, तब ये आत्महत्याग्रस्त किसान महिलाएँ तो उस आंदोलन में अदृश्य ही हैं। आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवार की विदर्भ से ग्राउंड रिपोर्ट

महाराष्ट्र : कर्ज़ से छुटकारा पाने के लिए आत्महत्या करें या गुलामगीरी पर गुलेल चलाएँ?

महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र का नाम किसानों की आत्महत्या के मामले में अक्सर सुनाई देता रहा है। लेखिका डॉ लता प्रतिभा मधुकर ने विदर्भ के यवतमाल और वर्धा जिले के मृतक किसानों की पत्नियों से मिलकर उनके संघर्ष और जीजीविषा को नजदीक से देखा। ये आत्महत्या न कर ज़िंदगी से क्यो और कैसे लड़ती हैं? पढ़िये ग्राउंड रिपोर्ट का भाग एक-