जावेद अनीस
सिनेमा
सिनेमा : बॉलीवुड भी दक्षिण और दक्षिणपंथ के साए से बच नहीं पाया
कला, सिनेमा और साहित्य पर देश की राजनीति का असर साफ़ तौर पर पड़ता है। 2014 के बाद मनोरंजन के सबसे बड़े, प्रिय और चर्चित माध्यम सिनेमा में जो बदलाव देखने को मिला, उससे सभी लोग परिचित हैं। संघ मनोरंजन की इस दुनिया में भी घुसपैठ कर वैचारिक वर्चस्व को बरकरार करने में कामयाब हो गया। साथ ही ओटीटी जैसे माध्यम आ जाने के बाद पैन इंडिया सिनेमा के चलते दक्षिण के सिनेमा और उसके अभिनेताओं/अभिनेत्रियों का वर्चस्व हिंदी भाषी दर्शकों पर पड़ने से बॉलीवुड के कलाकारों की चमक फीकी हुई है।
शिक्षा
स्कूलों का निजीकरण होने के बावजूद सरकारी स्कूल क्यों जरूरी हैं?
दरअसल सरकारी स्कूलों को बहुत ही प्रायोजित तरीके से निशाना बनाया गया है। प्राइवेट स्कूलों की निजीकरण समर्थक लॉबी की तरफ से विभिन्न अध्ययन और आंकड़ों की मदद से बहुत ही आक्रामक ढंग से इस बात का दुष्प्रचार किया गया है कि सरकारी स्कूलों से बेहतर निजी स्कूल होते हैं और सरकारी स्कूलों में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं बची है
सिनेमा
फिल्म आत्मपॅम्फ्लेट : मराठी की फॉरेस्ट गंप, जो देश के बहुजन सामाजिक-राजनैतिक मुद्दों पर सहजता से प्रहार करती है
फिल्म आत्मपॅम्फ्लेट,ब्लैक कॉमेडी के माध्यम से समाज में चल रही जाति, धर्म और अन्य गंभीर सामाजिक मसलों को बहुत ही संतुलित तरीके से पेश करती है। निर्माता-निर्देशक के लिए आज के समय में ऐसी प्रस्तुति वाकई साहस का काम है। फिल्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह दो अलग विषयों प्रेम और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को बहुत ही खूबसूरती से एक साथ लेकर चलती है।
राजनीति
किसान आन्दोलन और मजबूत सरकार की मजबूरी
कृषि कानूनों की वापसी से ठीक पहले दो घटनाएं हुयी हैं जिनपर ध्यान देना जरूरी हैं। पहली घटना आठ नवम्बर की है जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा लम्बे अंतराल के बाद पश्चिमी उत्तरप्रदेश का कैराना का दौरा किया गया जहाँ उन्होंने 'पलायन' के मुद्दे को एक बार फिर हवा देने की कोशिश की और मुज़फ़्फ़रनगर दंगे को याद करते हुए कहा कि 'मुज़फ़्फ़रनगर का दंगा हो या कैराना का पलायन, यह हमारे लिए राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि प्रदेश और देश की आन, बान और शान पर आने वाली आंच का मुद्दा रहा है।
पर्यावरण
जंगल और पर्यावरण को बचाते आदिवासी
आज भारत में करीब 12 करोड़ से अधिक आदिवासी हैं जो गरीबी और तबाही के दल-दल में धकेल दिये गये हैं। सबकी नजर इनके परम्परागत रिहायश में पाये जाने वाले प्रचुर संसाधनों पर है। कॉरपोरेट से लेकर सरकार तक हर किसी की गिद्ध नजर इसी खजाने पर है।