केशव शरण
लेखक जाने-माने कवि हैं और वाराणसी में रहते हैं।
संस्कृति
लोक चेतना में स्वाधीनता की लय खोजने की कोशिश है यह किताब
प्रकृति, संस्कृति और स्त्री किताब के सारे आलेख एक साथ मिलकर एक ऐसी वैचारिकी रचते हैं, जिसमें हमारी पूरी भारतीय परम्परा, राष्ट्रीय जीवन और व्यक्ति की स्वायत्तता का यथार्थपरक चिंतन उभरता है। सृष्टि का संवाह करने वाली नारी की अस्मिता पर यथार्थपूर्ण और आवेशहीन बहुआयामी विमर्श समावेशी और गहरी चिंतन दृष्टि का परिचायक है तथापि प्रखरता और तेजस्विता कहीं से कम नहीं है।
संस्कृति
याँ तक मिटे कि आप ही अपनी कसम हुये !
कभी हिंदी साहित्य और कविता में एक वाम शिविर हुआ करता था। इसके ऊपर प्रगतिशील लेखक संघ का झंडा लहराता था। समस्त साहित्य-परिक्षेत्र में...