लौटनराम निषाद
सामाजिक न्याय
आरक्षण तो सवर्णों का है बहुजन तो बस भागीदारी चाहते हैं
सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था अंग्रेजी शासनकाल के अंतिम समय में लागू हो चुकी थी लेकिन इस नीति का उद्देश्य समाज में उपेक्षित सामाजिक असमानता को दूर कर समतामूलक समाज की स्थापना के लिए नहीं था बल्कि इसकी जरूरत शासकीय सेवाओं में सांप्रदायिक असमानता दूर कर प्रतिनिधित्व प्रदान किए जाने तक ही सीमित था। लेकिन आज यह व्यवस्था पिछड़े व दलितों का संवैधानिक अधिकार है।
राजनीति
लोकसभा चुनाव 2024 : अबकी बार किसकी चुनावी नैया के खेवनहार बनेंगे निषाद
राम की नैया पार लगाने वाले निषाद और केंवट पिछले कई चुनावों से भाजपा के साथ खड़े रहे हैं। लेकिन इस बार भाजपा सरकार से निषाद नाराज चल रहे हैं। आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में निषाद किसके खेवनहार बनेंगे, यह तो 4 जून को आने वाले नतीजों से ही मालूम होगा।
सामाजिक न्याय
56 यादव एसडीएम की सूची पेश कर देंगे तो मुख्यमंत्री आवास पर स्वीपर का काम करूँगा
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग भर्ती परीक्षा-2011 के तहत 14 अगस्त, 2013 को उत्तर प्रदेश संयुक्त राज्य/ अधीनस्थ सेवा (मुख्य) परीक्षा-2011 का परिणाम घोषित किया गया। जिसके तहत कुल 389 पदों में सिर्फ 30 पद एसडीएम व 26 पद पीपीएस/ डीएसपी के थे।उन्होंने कहा कि एसडीएम पद के 86 स्थान ही विज्ञापित नहीं थे तो 86 में 56 यादव एसडीएम कहाँ से हो गए? उन्होंने कहा कि 1951 से 2017 तक कभी एसडीएम के 86 पदों की भर्ती ही नहीं हुई तो 86 में 56 यादव कैसे? उन्होंने कहा कि यदि मुख्यमंत्री 86 में 56 यादव एसडीएम की सूची सार्वजनिक कर देंगे तो हम 5 कालिदास मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास पर स्वीपर का काम करूँगा।
सामाजिक न्याय
डिप्रेस्ड’ शब्द का अपहरण
अस्पृश्यों को ही डिप्रेस्ड माना जाय- को लोथियन कमेटी ने मान लिया तथा अस्पृश्यों के मतदाता बनने की शैक्षिक एवं सम्पत्ति की योग्यता में भारी छूट दे दिया जबकि उनसे अधिक योग्यता रखने वाले शूद्र (हिन्दू पिछड़ी जाति) मतदाता बनने से वंचित कर दिये गये। जिसका विरोध करते हुए श्री शंकरन नायर, जो इंडियन सेन्ट्रल कमेटी (साइमन कमीशन के सहयोग हेतु, अक्टूबर 1929) के चेयरमैन थे, ने कहा था कि डिप्रेस्ड क्लासेज को अकेले मताधिकार की योग्यता में छूट देना उचित नहीं होगा। य
संस्कृति
छत्तीसगढ़ की वीरांगना बिलासा देवी केवट के नाम पर बसा है बिलासपुर शहर
बिलासपुर को बिलासा नाम की एक केंवटिन के नाम पर रखा गया है। इस बात का जिक्र भूगोल की पुस्तकों में भी देखा गया है।जानकारों की मानें तो देवार लोकगीतों में भी बिलासा के जीवन का वर्णन हुआ है। बिलासा जहां रहती थी उस जगह बिलासपुर के पचरीघाट के रूप में जाना जाता है। पचरीघाट में ही बिलासा की समाधि भी बनी हुई है।बिलासा को लोग देवी स्वरूप पूजते भी हैं। लोक साहित्यों में बिलासा के कृतित्व का जिक्र किया गया है।