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छत्तीसगढ़ में जमीनों पर जबरदस्ती कब्जे हेतु आदिवासी निशाने पर

विकास के नाम पर आज पूरे देश में किसान और आदिवासियों की जमीनों पर सरकार की नज़रें हैं। केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें सभी का विकास मॉडल किसान और आदिवासियों को उनकी जमीनों से विस्थापित कर  गुजरता है। उनके द्वारा किये जा रहे शांतिपूर्ण विरोध से सरकार इतनी डरी हुई है कि आन्दोलनकारियों को उत्पीड़ित कर डरा रही है।

विकास के नाम पर आज पूरे देश में किसान और आदिवासियों की जमीनों पर सरकार की नज़रें हैं। केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें सभी का विकास मॉडल किसान और आदिवासियों को उनकी जमीनों से विस्थापित कर  गुजरता है। उनके द्वारा किये जा रहे शांतिपूर्ण विरोध से सरकार इतनी डरी हुई है कि आन्दोलनकारियों को उत्पीड़ित कर डरा रही है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सलियों के नाम पर आये दिन आदिवासियों के साथ बेरहमी के मार-पिटाई की जाती रही है।

छत्तीसगढ़ के किसान सभा ने दक्षिण बस्तर के सुकमा जिले में बुर्जी और कुंदेड़ गांवों में पुलिस कैंप की स्थापना के विरोध में शांतिपूर्ण ढंग से धरना दे रहे आदिवासियों पर पुलिस  ने 15 और 22 दिसम्बर को हमला किया। पुलिस के इन हमलों में 13 आदिवासियों के गंभीर रूप से घायल हुए हैं। छत्तीसगढ़ किसान सभा ने मांग की है कि उक्त हमलों के लिए दोषी पुलिस अधिकारियों और जवानों को तत्काल गिरफ्तार किया जाए तथा घायल आदिवासियों को मुफ्त चिकित्सा सहायता उपलब्ध करा कर  व मुआवजा दिया जाए। इसके साथ ही किसान सभा ने बस्तर के सैन्यीकरण पर रोक लगाने की भी मांग की है।
आज यहां जारी एक विज्ञप्ति में छग किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने बस्तर में जल-जंगल-जमीन और खनिज की लूट पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि इस लूट के खिलाफ आदिवासी प्रतिरोध को कुचलने के लिए ही जगह-जगह पुलिस कैंप बनाए जा रहे हैं और इसके लिए आदिवासियों की जमीन छीनी जा रही हैं। आंदोलनकारी ग्रामीणों के अनुसार, कुंदेड़ का पुलिस कैंप दो आदिवासियों की 10 एकड़ जमीन पर जबरन कब्जा करके बनाया गया है।
उल्लेखनीय है कि पिछले दो सालों से सिलगेर, बुर्जी, कुंदेड़ सहित पुसानर, बेचापाल, बेचाघाट, नांबीधारा, गोमपाड़, सिंगाराम, गोंडेरास व अन्य स्थानों पर पुलिस कैंप की स्थापना के विरोध में आंदोलन चल रहे हैं। आदिवासियों के इन आंदोलनों को कुचलने के लिए उन पर भारी दमन किया जा रहा है। किसान सभा नेताओं ने कहा है कि अपनी मांगों के लिए शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन करने का अधिकार संविधान भी देता है, लेकिन प्राकृतिक संपदा की लूट को आसान बनाने के लिए केंद्र और राज्य, दोनों ही सरकारें उन पर जुल्म ढा रही है, उन पर लाठियां-गोलियां बरसा रही है और  उन्हें गैर-कानूनी तरीके से गिरफ्तार कर रही है। ये पुलिस कैंप ग्राम सभाओं की सहमति के बिना और पेसा कानून का उल्लंघन कर स्थापित किए जा रहे हैं।

सरकार ने गांव और जिंदगी पर हमला किया है

आंदोलनकारी आदिवासियों से मिली जानकारी के आधार पर किसान सभा नेताओं ने घायल आदिवासियों की तस्वीरें और नाम भी जारी किए हैं। घायलों के नाम हैं – बोगाम भीमे, मूवा एमूला (अलगुड़ा), मड़लाम जोगा (बोड़ाम), ओयाम लखमा, ओयाम मंगडू (प्रलागट्टा), कुंजाम देवा, मुचाकी मंगू, मुचाकी मंगली (बैनपल्ली), छुर्रा, माड़वी पोदीयल (तोलेवर्ती), कलमू गंगी, माड़वी ठंगा, पोडियाम मासे (मोरपल्ली गांव) आदि।
किसान सभा नेताओं ने प्रदेश और देश भर की प्रगतिशील-जनवादी ताकतों से बस्तर के आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों और मानवाधिकारों के हनन के खिलाफ आवाज उठाने की अपील की है।
संजय पराते
संजय पराते
लेखक वामपंथी कार्यकर्ता और छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं।
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