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कुलपति नियुक्तियों को अयोग्य करार देने पर राजभवन और राज्य सरकार में बढ़ी तकरार

राज्यपाल और राज्य सरकार फिर एक बार आमने-सामने पश्चिम बंगाल। राज्य में पंचायत चुनाव से ठीक पहले राज्य के उच्च शिक्षा विभाग ने राज्यपाल द्वारा नियुक्त 11 कुलपतियों को अयोग्य करार देकर उनके वेतन-भत्ते रोकने का आदेश जारी कर दिया  है। राज्य सरकार का कहना है कि ये नियुक्तियां क़ानूनी तौर पर वैध नहीं हैं। […]

राज्यपाल और राज्य सरकार फिर एक बार आमने-सामने

पश्चिम बंगाल। राज्य में पंचायत चुनाव से ठीक पहले राज्य के उच्च शिक्षा विभाग ने राज्यपाल द्वारा नियुक्त 11 कुलपतियों को अयोग्य करार देकर उनके वेतन-भत्ते रोकने का आदेश जारी कर दिया  है। राज्य सरकार का कहना है कि ये नियुक्तियां क़ानूनी तौर पर वैध नहीं हैं। राज्य सरकार का कहना है कि इन नियुक्तियों के लिए सरकार से कोई सलाह-परामर्श नहीं किया गया था।

गौरतलब है कि, हाल ही में राज्य के कई विश्वविद्यालयों ने कुलपतियों के साथ-साथ आचार्यों को भी नियुक्त किया था। उसके बाद राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने राज्यपाल द्वारा नियुक्त किये गये कुलपतियों पर आपत्ति जताई थी और अपनी नाराजगी जताते हुए कहा था कि ये नियुक्तियां अवैध हैं।

इससे पहले शिक्षा मंत्री ने 11 अस्थाई कुलपतियों से काम पर नहीं आने का अनुरोध किया था। राज्य के शिक्षा मंत्री ने तुरंत इन 11 कुलपतियों से पदभार ग्रहण नहीं करने की अपील की थी, क्योंकि उनकी नियुक्तियां राज्य शिक्षा विभाग की सहमति के बिना की गई थीं। हालांकि, उनकी अपील को नजरअंदाज करते हुए 11 में से 10 कुलपतियों ने गवर्नर हाउस के निर्देशानुसार अपना पदभार ग्रहण कर लिया था।

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इस बार सीधे तौर पर उनके वेतन-भत्तों पर रोक लगाकर राज्य ने राजभवन को कड़ा संदेश दिया है। राज्य उच्च शिक्षा विभाग ने संबंधित विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को निर्देश दिया है कि उन अस्थायी कुलपतियों की नियुक्ति अवैध है, इसलिए उन्हें कोई वेतन नहीं दिया जाएगा।

इससे पहले मीडिया में बीते 2 जून को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु के इस दावे को राज्यपाल ने ख़ारिज कर दिया था कि उनके द्वारा राज्य के 11 विश्वविद्यालयों में अंतरिम कुलपतियों की नियुक्ति अवैध है।

राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच टकराव का पुराना इतिहास है, लेकिन केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से गैर भाजपा शासित प्रदेशों में यह टकराव अधिक खुलकर सामने आने लगा है। इससे पूर्व बंगाल के पूर्व राज्यपाल और वतर्मान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बीच विवाद का लम्बा सिलसिला चला था।

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यह विवाद केवल पश्चिम बंगाल तक सिमित नहीं है। झारखंड, दिल्ली, तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना जैसे गैर बीजेपी शासित राज्यों में राज्य सरकार का राज्यपाल के साथ विवाद होते रहे हैं। बंगाल सरकार आरोप लगाती है कि उसके कामकाज में राज्यपाल रोड़े अटकाते हैं। तमिलनाडु में राज्य सरकार ने तो राज्यपाल आरएन रवि को वापस बुलाने की ही मांग कर दी थी। केरल ने राज्य के विश्वविद्यालयों के चांसलर पद पर राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान की जगह शिक्षाविदों को नियुक्त करने के लिए अध्यादेश प्रस्तावित किया। ऐसा ही विवाद महाराष्ट्र में कांग्रेस-शिवसेना गठबंधन की सरकार के समय भी देखने को मिला जहां राज्यपाल लगातार विवादों में घिरे रहे।

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