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ग्राउंड रिपोर्ट

राजस्थान : ग्रामीण इलाके आज भी विकास की उम्मीद में कर रहे हैं संघर्ष

गांव में हर किसी की अपनी अलग अलग कहानियां होती हैं, जो उनके संघर्ष को दर्शाती है लेकिन यह तभी संभव हो सकता है जब हर व्यक्ति को उसकी मेहनत का सही फल मिले और उनके सपनों को पूरा करने का अवसर मिले ग्रामीण इलाकों में विकास की कहानी केवल योजनाओं और नीतियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन लोगों की भावनाओं, संघर्षों और सपनों का प्रतिबिंब है जो दिन-रात मेहनत करके अपने जीवन को सुधारने की कोशिश करते हैं। लेकिन हर बार सफल नहीं होते।

जब भी विकास की बात आती है तो अक्सर गांव को इसमें पीछे समझा जाता है। यह कल्पना कर ली जाती है कि गांव में विकास की कमी होगी। आर्थिक रूप से पिछड़ा होगा। यह सही है कि शहरों की तुलना में गांव के विकास की प्रक्रिया धीमी होती है लेकिन दैनिक जीवन में ग्रामीणों के संघर्ष और उम्मीद विकास के अवसर को बढ़ा देते हैं। बीकानेर, राजस्थान का वह क्षेत्र है जहां इतिहास, संस्कृति और रेगिस्तानी जीवन का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यहां के ग्रामीण इलाकों में विकास की कहानी केवल योजनाओं और नीतियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन लोगों की भावनाओं, संघर्षों और सपनों का प्रतिबिंब है जो दिन-रात मेहनत करके अपने जीवन को सुधारने की कोशिश करते हैं।  हर सुबह जब सूरज की किरणें सुनहरी रोशनी बिखेरती है तो गांव के लोगों के दिलों में एक नई उम्मीद जगती है। यह उम्मीद उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव की कहानी को बयां करती है।  बदलाव की ऐसी ही कहानी हमें बीकानेर के लूणकरणसर ब्लॉक स्थित करणीसर गांव में भी देखने को मिलती है।

गांव की मिट्टी से जुड़ी हर कहानी में कठिनाइयों के साथ-साथ जीत की भी झलक मिलती है। करीब 335 लोगों की आबादी वाला यह गांव भले ही विकास के सभी पहलुओं को पूरा न करता हो, लेकिन यहां के निवासी इन्ही कमियों के बीच प्रतिदिन जीवन के संघर्ष की नई कहानियां गढ़ते हैं। गांव की 50 वर्षीया सीमा देवी की आवाज में एक गहरी पीड़ा छुपी नज़र आती है, वह कहती हैं कि ‘गांव में पानी की पाइपलाइन तो बिछी है लेकिन पीने के साफ़ पानी के लिए संघर्ष करनी पड़ती है क्योंकि नल से मीठे पानी की बजाय खारा पानी उपलब्ध होता है। ऐसे में हमें रोज़ पानी की तलाश में मीलों चलनी पड़ती है।’ सीमा देवी के शब्द हमें याद दिलाते हैं कि केवल सुविधाओं का होना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि उसकी गुणवत्ता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। वहीं 30 वर्षीय शारदा, जिसकी जिंदगी में मेहनत की गंध बसी है, कहती है, ‘हमें रोजमर्रा की जिंदगी में रोजगार की उम्मीद तो दिखाई देती है परंतु मेहनत का फल प्राप्त करने के लिए बहुत संघर्ष करनी पड़ती है। रोजगार के सीमित अवसर इस संघर्ष को बढ़ा देते हैं।’ उसकी पीड़ा बताती है कि मेहनत के उचित मूल्य के बिना विकास की कहानी अधूरी है।

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शहरी क्षेत्रों की तरह करणीसर गांव के युवाओं में भी आज बदलाव की नई हवा चल रही है. 18 वर्षीय एक किशोरी माया, जिसकी आंखों में सपने पूरे होने की चमक साफ झलकती है, बताती है, “मेरे पास फोन जैसे आधुनिक तकनीक की सुविधा उपलब्ध है, जिससे मेरी पढ़ाई में काफी मदद हो रही है. अब मैं ऑनलाइन कक्षाएं लेती हूं, नई-नई चीजें सीखती हूं और अपनी रुचियों को बढ़ावा देती हूं.” माया की बातों में एक नयी दिशा की झलक है, जहां तकनीक ने उसके जीवन में नई उमंग भर दी है. यह छोटी-सी सफलता उसके लिए एक बड़े बदलाव का संकेत है, जो बताती है कि जब युवा सही साधनों से लैस हों, तो न केवल वे अपने सपनों को साकार कर सकते हैं बल्कि विकास को एक नई दिशा भी दे सकते हैं.

विकास की यही झलक गांव के किसानों में भी नज़र आती है। जिनकी मेहनत की खुशबू सुबह की रोशनी के साथ ही उनके खेतों में फैल जाती है। यह खुशबू खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर भारत की कहानी कहती है। 52 वर्षीय किसान गुलाब सिंह कहते हैं, ‘मेरी मेहनत और धैर्य से जब हल चलते हैं और फसल उगते हैं, तो हर बूंद पसीने के साथ एक नई उम्मीद जगमगाती है। यह उम्मीद मेरी लहलहाती फसल की कहानी बुनती है।’ राजासर की बातों में प्राकृतिक आपदाओं, अनिश्चित मौसमी परिस्थितियों और आर्थिक चुनौतियों के बावजूद उनके अटूट साहस की झलक दिखाती है।

हालांकि बदलाव की दिशा में चुनौतियां भी कम नहीं हैं। 46 वर्षीय सविता कहती हैं, ‘जब भी कुछ नया होता है, तो हमारी उम्मीदें बढ़ जाती हैं, लेकिन अक्सर विकास का सपना अधूरा रह जाता है।  हालांकि विकास का रास्ता सिर्फ सुविधाओं के बढ़ने से ही नहीं, बल्कि उनके सही क्रियान्वयन और जनभागीदारी से भी तय होते हैं। अगर गांव में विकास करनी है तो सभी को अपनी पूरी भागीदारी निभानी होगी। केवल विभाग और पंचायत को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। गांव के एक बुजुर्ग परमबीर कहते हैं कि ‘विकास का सफर कोई सरल नहीं होता है, परंतु हर छोटी सफलता उसका एक आधार ज़रूर बनती है।’ वह कहते हैं कि पहले भी कठिनाइयां हुआ करती थी, लेकिन अब लोगों की अपेक्षाएं बढ़ गई है।

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वास्तव में, गांव में हर किसी की अपनी अलग अलग कहानियां होती हैं, जो उनके संघर्ष को दर्शाती है लेकिन यह तभी संभव हो सकता है जब हर व्यक्ति को उसकी मेहनत का सही फल मिले और उनके सपनों को पूरा करने का अवसर मिले। करणीसर गांव में भी विकास की कहानी अपने अपने स्तर पर लिखी जा रही है। हर छोटी सफलता, चाहे वह पीने के पानी का मसला हो, एक खुशहाल परिवार की मुस्कान हो या युवा पीढ़ी की पढ़ाई में हुई प्रगति का विषय हो, उन सब में विकास की असली कहानी छुपी होती है। जो हमें उम्मीद, आत्म-सम्मान और कठिनाइयों के बावजूद आगे बढ़ने का हौसला सिखाती है। हालांकि विकास की राह में कई उतार-चढ़ाव आते हैं, पर लोगों की भावनाओं में हमेशा एक नई रोशनी बनी रहती है। यह रोशनी उनके संघर्षों, मेहनत और उम्मीदों में समाई हुई है। जब हम उनकी कहानियों को पढ़ते हैं, तो हमें यह एहसास होता है कि विकास का असली पैमाना उन दिलों में बसती आशा और मेहनत का मेल है। जहां हर व्यक्ति अपनी मेहनत और लगन से अपने सपनों को हकीकत में बदलने की कोशिश करता है, और हर दिन एक नई सुबह के साथ जीवन में आशा की किरण जगाता है। 

निर्मला टाक
निर्मला टाक
लेखिका शिक्षिका हैं और राजस्थान में रहती हैं।

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