Wednesday, July 2, 2025
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

स्त्री

शिक्षा के माध्यम से आगे बढ़ रहीं हैं गाँव की लड़कियाँ

मुजफ्फरपुर (बिहार)। जीवन में सफलता प्राप्त करने और कुछ अलग करने के लिए शिक्षा अर्जित करना सभी के लिए महत्वपूर्ण है। यह स्त्री एवं पुरुषों दोनों के लिए समान...

बहू और बेटी में भेदभाव करता समाज

भारतीय समाज जटिलताओं से भरा हुआ है, जहाँ रीति-रिवाज के नाम पर कई प्रकार की कुरीतियां भी शामिल...

नहीं रुक रहा है किशोरियों के साथ भेदभाव, आज भी समझा जाता है बोझ

भारत में हर बच्चे का अधिकार है कि उसे, उसकी क्षमता के विकास का पूरा मौका मिले। लेकिन...

ग्रामीण महिलाओं के सशक्तीकरण का माध्यम बना इंटरनेट

कहा जाता है कि महिला सशक्तीकरण एक ऐसी अनिवार्यता है, जिसकी अवहेलना किसी भी समाज और देश के...

लैंगिक असमानता का शिकार होती पर्वतीय महिलाएं

'लड़की हो दायरे में रहो...' यह वाक्य अक्सर घरों में सुनने को मिलता है, जो लैंगिक असमानता का...

वाराणसी : बच्चों की ऊंची पढ़ाई के साथ अपनी पढ़ाई का सपना पूरा कर रही हैं सुमन

शिक्षा के बारे में डॉ. अंबेडकर का कहना है कि वह शेरनी का दूध है जो भी पिएगा वह दहाड़ेगा। सुमन को देखकर लगता है कि वह भी शेरनी का दूध पी रही हैं। उनमें जो आत्मविश्वास है वह उन्हें किसी जगह झुकने नहीं देगा। एक माँ के रूप में वह अपने बच्चों की उच्च शिक्षा का सपना देखती हैं। लेकिन स्वयं अपने भी अधूरे सपने को पूरा करने में जी जान से लगी हैं।

लड़कों की तरह क्यों नहीं पढ़ सकतीं लड़कियां ?

हमारा समाज जितना ज्ञान लड़कों को देने के लिए व्याकुल रहता है, उतना ही अगर लड़कियों को दी जाए तो वह न केवल सशक्त होंगी, बल्कि देश से महिलाओं पर अत्याचार और शोषण का खात्मा भी मुमकिन हो सकता है। हालांकि, राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक किशोरियों की शिक्षा के लिए कई महत्वाकांक्षी योजनाएं चलाई जा रही हैं। उन्हें मैट्रिक, इंटर, यूजी, पीजी आदि करने के लिए प्रोत्साहन राशि और स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड भी दिए जा रहे हैं।

आदिवासी समाज में भी बढ़ रहा है लैंगिक भेदभाव

अनुसूचित जनजाति बहुल इस क्षेत्र में सही अर्थों में विकास नहीं हो पाता है और लोगों को बुनियादी सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। अलग-अलग मैदानी और पहाड़ी क्षेत्र में रहने के कारण संपूर्ण विकास की स्थिति नहीं बनती है। यही कारण है कि स्कूल भी गांव से दूर स्थापित हैं। इसके विपरीत इस क्षेत्र में सामान्य और पिछड़ा वर्ग की करीब 20 प्रतिशत आबादी भी विधमान है, जिनमें साक्षरता की दर 70 से अधिक है।

लैंगिक भेदभाव झेल रहीं गांव की लड़कियां

मुजफ्फरपुर (बिहार)। लैंगिक असमानता हमारे रूढ़िवादी व पुरुषवादी समाज की एक बड़ी और गंभीर बीमारी है। सदियों से यह संकीर्ण सोच हमारे समाज व...

आज़ादी के अमृत महोत्सव के दौर में महिलाओं पर हिंसा और उनके हक़ की आवाज

देश में आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, लेकिन आज भी महिलाओं की घरेलू, सामाजिक, आर्थिक स्थितियों में कोई खास सुधार...

घर की दहलीज के अन्दर भी असुरक्षित हैं लड़कियां

 मड़वन ब्लॉक की रहने वाली एक 16 वर्षीया नाबालिग निर्मला (बदला हुआ नाम) अपने साथ बचपन में हुए यौन दुराचार की घटना के बारे...
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